SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 160
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ అనుచరుడు ఉంటుందనుకుంటుందడుగడుగునపడatchattatatatattacks witutwwwwwe womawwamsturmwareaamream जैन-रत्नसार सर्व तपस्या ग्रहण करने की विधि प्रथम शुभ दिन शुभ घड़ी शुभ मुहूर्तमें अच्छे वस्त्र पहन कर गुरुके पास जावे । गुरुजी को वन्दन करके ज्ञान पूजा करे । तदनन्तर गुरु के मुख से (ओली तप ) अथवा जिस तप का भी निश्चय किया हो ग्रहण करे तथा इरियावहियं० पडिक्कमे । फिर एक लोगस्स को काउसग्ग पार प्रगट लोगस्स. कहे । फिर नीचे बैठ के तप आराधन करनेके निमित्त मुंहपत्ति का पडिलेहण करे । पीछे दो वन्दना देकर स्थापनाचार्यजी को खमासमण दे 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् (ओली तप) या जो तप निश्चित किया हो सो बोले "गहणत्यं चेइयं वदावेह” ? इच्छं कह चैत्यवन्दन करे । णमुत्थुणं. पूर्वक अरिहंत चेइयाणं. सम्पूर्ण पढ़ अणत्थ. कह एक । एक णमोकार का चार दफा ध्यान करे तथा थुइयां कहे। फिर नीचे बैठ के प्रगट णमुत्थुणं. कहे । पीछे खड़े हो “शान्तिनाथ स्वामी आराधनार्थ करेमि काउसग्गं.” अणत्थ. कह एक लोगस्स का काउसग्ग पार के निम्न थुई कहे। श्री मते शान्तिनाथाय । नमश्शान्ति विधायिने । त्रैलोक्यस्यामराधीश । मुकुटाभ्यचितांघ्रये ॥१॥ ___पुनः “शान्ति देवता आराधनार्थं करेमि काउसग्गं.” अणत्थ० कह एक णमोकार का काउसग्ग पार “शान्तिः शान्ति करः श्रीमान्, शान्ति दिशतु मे गुरुः । शान्तिरेव सदा तेषां, येषां शान्ति हे गृहे ॥२॥” की थुई बोले ! पश्चात् "श्रुतदेवता आराधनाथ करेमि काउसग्गं अणत्थ.” कह एक णमोकार का काउसग्ग पार थुई कहे । “भुवन देवता आराधनार्थं करेमि काउसगं” अणत्थ. कह एक णमोकार का काउसग्ग पार थुई कहे । "क्षेत्रदेवता आराधनाथ करेमि काउसग्ग” अणत्थ. कह एक णमोकार * चावल, नैवेद्य, फल, नारियल और कम से कम १ रु० ज्ञानपूजा पर अवश्य चढ़ावे । चौकी या पट्टे पर साथिया तीन ढेरी और सिद्धशिलाके आकार का अर्धचन्द्र बना कर मिठाई 4 और फल चढ़ाके वीच में नारियल और रुपया चढ़ा दे, फिर मुखवत्रिका ( मुहपत्ति) के हाथ में ले शुद्ध भावों से जो तपस्या करनी हो इसकी गुरु मुख से विधि करे। प्रमाणपत्रालययणप्रणयनगणनयन्त्रणमा
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy