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________________ మనం నడుం వంపదనుడుచుకువచనందుకు చదవనులు विधि-विभाग १२७ wimwwwimanwww నడవడ a tatatatatamatala चारित्राचार, तपाचार, वीर्याचार आदि पञ्चाचार की प्राप्ति हो ।” ऐसा चिन्तवन करते हुए पुष्प चढ़ावे । तदनन्तर धूप इस श्लोक से खेवे । धूप पूजा सकल कर्म महेन्धन दाहनं, विमल संवर भावसुधूपनम् । अशुभ पुद्गल संगविवर्जनं, जिनपतेः पुरतोऽस्तु सुहर्षतः ॥४॥ अथवा दशांग धूप धुखाय के, भवि धूप पूजा से लिये। फल ऊर्द्धगति सम धूप दे, निज पाप भव भव के लिये ॥ ॐ ह्रीं श्रीं परमपरमात्मने धूपं यजामहे स्वाहा । कह जिस तरह धूप का धुंआ उड़ता है उसी तरह भगवन् ! मेरे पाप कर्म भी दूर हो जावे ।" ऐसी भावना भाते हुए धूप करे। पश्चात दीपक प्रज्वलित करके निम्न श्लोक पढ़े। दीप पूजा भविक निर्मल बोध विकाशकं, जिनगृहे शुभ दीपक दीपनम् । सुगुण राग विशुद्धि समन्वितं, दधतु भाव विकाश कृते जनाः ॥५॥ अथवा जिन दीप के परकास के, तम चौर नासे जानिये । तिम भाव दीपक णाण से, अज्ञान नास बखानिये ॥ ॐ ह्रीं श्रीं परम परमात्मने० दीपं यजामहे स्वाहा कहे “जिस तरह ये दीपक प्रकाशमान है उसी तरह मेरा ज्ञान रूपी दीपक भी प्रकाशमान हो।" ऐसी भावना भाते हुए प्रभु के दाहिने तरफ दीपक रखे। फिर अक्षत* हाथ में लेकर ये श्लोक पढ़े-- अक्षत पूजा सकल मङ्गल केलि निकेतनं, परम मङ्गल भाव मयं जिनं ।। श्रयति भव्यजना इति दर्शयन, दधतु नाथ पुरोऽक्षत स्वस्तिकम् ॥६॥ कृष्णागर मृगमदतगर, अम्बर तुरग लोबान । मेल सुगन्ध घन सारघन, करो जिनने धूपदान ।। * अक्षत (चावल) टूटे हुए नहीं होने चाहिये । ముందడుదనందనవనంద న ----
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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