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________________ भूमिका धर्म युद्ध करने वाले को बिहिस्त मिलता है । मुजाहिदों को जन्नत मिलता है। काश्मीर की सलिम इसमे विश्वास करती थी । जन्नत मे वीरों को सुन्दर स्त्रियाँ मिलती है । उन्हे वहाँ ऐश्वर्य मिलता है । श्रीवर इस मान्यता का वर्णन करता है— उस रण प्रागण में अहमद प्रतीहार प्रमुख वीर लोग, शौर्य प्रदचित करते हुए, स्वर्गीय स्त्रियों के सुख भागी बने। ( ४:१७८) किसी बोर सुन्दर युवक की मृत्यु पर काश्मीरी अंगनायें शोक करती है—'मृत उसके रूप का स्मरण कर पुर की अंगनायें बहती है ऐसा सुन्दर रूप हम कहीं नहीं देखती है। यह सुन्दर रूप मानुष स्त्रियों के योग्य नहीं, इसलिये देवियाँ स्वर्ग ले जा रही है क्या, जो यहाँ मृत पड़ा है ? ( ४:१७९, १८०) वहाँ पर सुभटो के साथ युद्ध करते हुए कुछ वैयिय भट पीछे छूटने के कारण स्वर्ग स्त्री सुख के भागी बने । ' ( ४:५९१ ) ८७ दर्शन : श्रीवर ने जैनुल आवदोन को दर्शन सुनाते हुए अपना विचार प्रकट किया है—'आकाश वर्ण सदृश जाग्रत सज्जन व्यक्ति का, आकाश वर्ण सदृश उस भ्रम का, पुन. स्मरण तथा विस्मरण कर जाना श्रेष्ठ है । संसार को दीर्घकालिक स्वप्न सदृश अथवा दीर्घकाल का प्रिय दर्शन अथवा दीर्घकालिक मनो राज्य जानिये । यदि जन्म, जरा, मरण न हो, अथवा यदि इष्ट, वियोग का भय न हो, यदि वे सब अनित्य न हो, तो इस जन्म मे किसको रति नही होती ? जैसे-जैसे निवृत्त होता है, वैसे-वैसे मुक्त होता है । चारो ओर से निवृत्त हो जाने से अणु मात्र दुःख का अनुभव नहीं करता' (१:७:१३४-१३७) सुल्तान के समय दर्शन का अध्ययन अध्यापन होता था। धीवर लिखता है-प दर्शनों की क्रियाये जिसके वृत्त को उसी प्रकार अनुरंजित की जिस प्रकार सुमनो मे आह्लाद दायिनी (छ) ऋतुएँ नन्दन को ।' ( १:१:२८) सतीसर श्रीवर के समय भी काश्मीर सतीसर नाम से ख्यात था । ( १ : १:८५ ) श्रीवर देश का नाम काश्मीर न देकर सती देश देता है - 'निश्चय ही काली धारा के ब्याज से भगवती काली, सती देश के हित इच्छा से उनका भक्षण कर लिया । ( ४.२१८) फतेह खान काश्मीर पर राज्य लेने की इच्छा से आक्रमण किया। सुल्तान मुहम्मद खाँ को हटाकर स्वयं सुल्तान बनना चाहा। मार्गेश इब्राहीम बालक सुल्तान मुहम्मद शाह का अभिभावक तथा मन्त्री था । फतेह खान को सन्देश भेजा था । वह ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है । तत्कालीन काश्मीरी मुसलमान काश्मीर की परम्परा तथा उसके इतिहास मे विश्वास करते थे- 'भो ! भो । मण्डल रक्षक, नृप सम्पत्तियों के भोक्ता एवं सर्वथा हित कर्ता गण, पुराणोक्त, इस पर विचार करो राजा शिवां-शज है, कल्याणोच्छुक विद्वानों को, दुष्ट होने पर भी चाहिए, इस देश मे तपस्या द्वारा राज्य प्राप्त होता है, न कि पराक्रमो से ने अपने क्रमागत ( राज्य ) को क्यों नही प्राप्त किया ? चिरकाल तक (४:४३२-४३४) काश्मीर भूमि पार्वती है, वहाँ का उसकी उपेक्षा या अपमान नही करनी अन्यथा आदम खान आदि लोगों अनौचित्त्व फलित नहीं होता ।' - बुभिक्ष: लौकिक ४५३६ = सन् १४६० ई० मे भयंकर दुर्भिक्ष पड़ा। 'इस वर्ष यंत्र मास में अकस्मात आकाश से चूल दृष्टि हुई दुर्भिक्ष काल का सन्देश वाहक था। छत्तीस वर्ष सबके लिए भयकारी होता है क्योंकि इसी
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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