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________________ ८६ जेनराजतरंगिणी शान्त कर दिये जाने पर, पथिक गृह के समान यन में भी सुख पूर्वक शयन करते थे'। (१:१:४१) हसन शाह के काल मे चोरी, लूट के साथ घर लूटने का दण्ड ही समाप्त हो गया था। ( ३:२०९ ) , भिकाल में भ्रष्टाचारी वणिको ने लोगों की अमूल्य सम्पत्ति लेकर बहुत मंहगा धान बेचा था। सामान्य समय आते ही सुल्तान ने वणिकों में उचित मूल्य दिलाकर शेष धन वापस दिला दिया ( १:२:३२ ) इसी काल मे सुल्तान ने भोजपत्र पर लिखे गये ऋणी एवं ऋणदाता की व्यवस्था को समाप्त कर दिया । ( १:२:३४) दुर्भिक्ष का लाभ उठाकर, धनिकों ने गरीबो से ऋण पत्र लिला लिया था। आज भी दिहातो, में कुछ धन देकर, ज्यादा रुपयों का ऋण पत्र लिखाते है । सादे कागज पर दस्तखत कराकर रख लिया जाता है । सुल्तान ने भोजपत्र पर इस प्रकार के लेखो की मान्यता समाप्त कर दी । क्योकि वे गरीब जनता एवं प्राकृतिक कोप का लाभ उठाकर लिखाये गये थे । अभिभावक : सुल्तान राजपुत्रों को किसी सामन्त, मन्त्री, किंवा किसी कुलीन वर्ग के व्यक्ति अभिभावकत्व में रख देते थे । सुल्तान जैनुल आबदीन अपने दो पुत्रो का अभिभावक दो ठाकुरों हस्सन एवं हुस्सन को बनाया था । प्रत्येक पुत्र एक-एक ठाकुर के अभिभावकत्व में रहता था । ( १:१:५९ ) हसन शाह ने अपने पुत्र मुहम्मद, जो कालान्तर में सुल्तान मुहम्मद हुआ था, तावी भट्ट के अभिभावकत्व में रख दिया था । (३ : २२५) अपने दूसरे पुत्र होस्सन को मलिक नौरोज को दिया था । ( ३:३२७) युसुफ खा जोन राजानक के अभिभावकत्व में था । उत्सव : सुल्तान जैनुल आबदीन वितस्ता जन्मोत्सव उत्साह से मनाता था । दीप मालिका होती थी । गाना, बजाना, नृत्य होता था । सुल्तान सजी नाव पर वितस्ता भ्रमण करता था। संगीतों से तट गूंज उठता था । वितस्ता दीपदान किया जाता था । तटों पर दीप मालिका सजती थी । काश्मीरी ललनाये वितस्ता पुलिन मे पूजा करने आती थी। समस्त रात्रि नृत्य, गीत एवं संगीत में सुल्तान जैनुल आबदीन अपना जन्मोत्सव मनाता था । उस दिन देश विदेश से लोग आते थे । उन्हें उपहार एवं पदवियाँ दी जाती थीं । राजा के जन्म दिवस के उत्सव पर, राजपुरीय जयसिंह का राज तिलक किया गया था। ( १:३:४० ) इसी प्रकार वंत्रोत्सव मनाया जाता था । (१:४:२) हैदर शाह का राज्य ग्रहणोत्सव प्रति वर्ष मनाया जाता था । ( २:४) सुल्तान लोग पुत्रों का जन्मोत्सव मनाते थे। हसन शाह ने लौकिक ४५५४ = सन् १४७८ ई० में पुत्र मुहम्मद का जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया था। उत्सव से नृत्य गान एवं नाटक का आयोजन होता था। सामन्त, सचिव आदि को उपहार दिया जाता था । जनता भी मुक्त हस्त, उत्सव मे भाग लेने वाले (३:२२७-२२९) कलाकारों को दान देती थी । उच्च अधिकारी भी अपना जन्मोत्सव धूमधाम से मनाते थे। ( ३:४०६) हिन्दू नाग यात्रा, पैत्रोत्सव तथा मुसलमान ईद उत्सव (३ : २८६ ) सर्वोत्सव (३ : ५३३) मनाते थे । वीरगति भारतीय मान्यता है। युद्ध क्षेत्र मे वीरगति प्राप्त व्यक्ति स्वर्गं प्राप्त करता है। मुसलमान विश्वास करते हैं।
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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