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________________ जैन राजतरंगिणी कश्मीरियों के यहाँ विवाह आदि सम्बन्ध करते थे, परन्तु वे हिल-मिल नहीं सके । काश्मीरियों की उपेक्षा करते थे। मार्गे जहांगीर ने अपनी बहन की प्रतिष्ठा मे कमी देखकर निर्मुक्ति पत्र ( तलाक) दिलवा दिया ।' (३:१६३) ७२ " " रानी सैयियों का पक्ष करती थी। राज्य प्रासाद मे काश्मीरी एवं संविद दो पक्ष हो गये। सैयिद रानी का प्रश्रय पाकर बली तथा राजकार्य में हस्तक्षेप करने करने लगे। यदि संविदों को कुछ कहा जाता, तो रानी क्रुद्ध हो जाती । श्रीवर लिखता है - 'जहाँगीर मार्गेश ने एकान्त मे राजा से एक बार कहाहे ! राजन् ! निष्कासित संयिद, जो इस निष्कण्टक राज्य मे ले आये गये हैं, यह स्वयं अपना अनर्थ किया गया है । जिस प्रकार जैनुल आबदीन के पौत्र तुम, राज्य करने के योग्य हो, उसी प्रकार उसका दौहित्र मियाँ मुहम्मद भी आ गया है। तुहरूको से आश्वस्त मन वाले वे संविद सर्वदा शंकनीय है। मास पर गुड की तरह, राज्य पर, जिनकी लुब्ध दृष्टि रहती है । हे ! राजन् ! बहुभार्यां वाले आपके लिये एक प्रिया के प्रति आसक्ति ठीक नही है । एक लता मे निरन्तर रत भृंग की कौन प्रशसा करेगा ? हे ! राजन् ! यदि तुम स्त्री के आधीन न होते, तो तुम्हारा सब कार्य सिद्ध होता । अतः हे ! प्रभो ! स्त्री वशवर्ती मत हो ।' चंचल राजा यह उपदेश सुनकर रात्रि में मोहवश सब बातें रानी से कह दिया। भयावह सर्पिणी के समान रानी क्रुद्ध होकर पितृ ( संविद) पक्ष में आदर भाव वाली मार्गपति का अनिष्ट चिन्तन करने लगी। (३:४४०-४५४) श्रीवर के अनुसार वे भिक्षुकों के समान काश्मीर मे आकर राज सम्मान प्राप्त कर सैयिद सम्पत्ति युक्त हो गये थे— 'कणभोगी विदेशी जो इस देश मे आये, सम्पत्ति युक्त हो गये और गर्भ से निकले हुए के समान, आत्मचरित भूल गये प्रजा पीड़न करने लगे। इसी पाप भार से उनका वैभव नष्ट हो गया। सुल्तान द्वारा निष्कासित कर दिये सरोवर से निकाले गये, मत्स्य के समान, प्राण नाश के भय से व्याकुल हो गये । ( ३:१५९ ) जैनुल आबदीन दूरदर्शी था । सैंयिदों के खतरे को समझ गया । सैयिद यौन सम्बन्धों के कारण राज्य प्रासाद मे प्रवेश पा चुके थे उन्हें काश्मीर की संस्कृति सभ्यता में आस्था नही थी। उनके स्वार्थ एव स्वनिष्ट दृष्टिकोण के कारण, जैनुल आबदीन उन्हे काश्मीर से निष्कासित करना चाहता था । परन्तु असफल रहा। हसन शाह ने उस कार्य को पूरा किया। 'जेल लावनीन संयिद निष्कासन को नहीं सम्पन्न कर पाया, इसके पौत्र ( हसन शाह) ने अनायास ही कर दिया ऐसा लोगो ने कहा ' ( ३:१६८ ) 3 , । सैयद काश्मीर से निष्कासित कर दिये गये - परन्तु मल्लिक दल पुनः सैयिदो को बुलाने का विचार करने लगा । उनके आगमन से उनका दल मजबूत हो जायगा । ( ३: ३३० ) यह बात उनके मन मे बैठ गई थी। सैयिद लोग दिल्ली में रहते थे । उनके पास काश्मीर आने के लिए संदेश भेजा । ( ३:३३१ ) किन्तु काश्मीरी देशभक्त कुलीन वर्ग, तथा तीक्ष्णों ने सैयिद आगमन का विरोध किया । ( ३:३३४ ) सावधान किया उनके आने से सर्वनाश होगा। सेयिदों के आगमन की बात सुनकर, फिर्य डामर ने अहमद आयुक्त को सावधान किया- 'तुम दुर्धर देश के कष्ट, तुकों के लिए अत्यधिक सहायक एवं यत्न पूर्वक निष्कासित सैपियों को मत प्रवेश दो । (३:३३७) उनके आने से सर्वनाश होगा (३ : ३३८ ) अपनी मृत्यु का कारण होगा ।' (३:३४१) किन्तु आयुक्त ने बात नहीं मानी। सैथियों ने काश्मीर मे प्रवेश किया 1 मियाँ हस्सन सर्व प्रथम सुल्ताल के सम्मुख उपस्थित हुआ । ३:३४६) मलिक ने रखीयाचम प्रदेश संवियों को जागीर मे दिया। (१:३४७) संविद हसन को सीधा देशाधिकार दिया गया। ( ३: ३४८) वही मल्लिक के नाश का कारण हुआ ।
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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