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________________ भूमिका तुर्किस्तान, भारत मे अनिश्चित स्थिति तथा राजनीतिक कारणों से काश्मीर में तुरुष्क शरण लेने लगे। हिन्दू राजाओं की सेना मे भी विदेशी थे। विदेशी राजसेवक शाहमीर ने ही काश्मीर मे मुसलिम राज्य स्थापित किया था। काश्मीर मे विदेशियो के उपनिवेश थे। सैयिद विदेशी ये। उनकी आबादी बढ़ गयी थी। वे दिन-प्रतिदिन शक्तिशाली होते गये। काश्मीरी एवं विदेशी मुसलमानो का अन्तर प्रारम्भ में नहीं प्रकट होता था। सभी एक धर्मानुयायी थे। हिन्दुओं के विरुद्ध सब एक थे। काश्मीर के राजवंश में विवाह द्वारा विदेशियों ने प्रभाव बढा लिया। विदेशी मुसलमानो के प्रति काश्मीरी मुसलमानों को प्रारम्भ मे स्नेह था। उनके आगमन का स्वागत करते थे। परन्तु जैसे-जैसे दिन बीतता गया, स्थिति बदलती गयी। राजनीतिक स्वार्थो एवं शक्ति प्राप्ति की दृष्टि ने काश्मीरी तथा गैर काश्मीरियों में भेद उत्पन्न कर दिया । हिन्दू जनता के मुसलिम हो जाने पर, हिन्दुओं का विरोध न होने पर, मुसलिम परस्पर विभाजित हो गये। काश्मीरी तथा गैर काश्मीरियों का प्रश्न उठ खड़ा हुआ। अनेक विप्लवो एवं संघर्षों का जन्म हुआ । उनका यथा स्थान वर्णन किया है। सैयिद : सैयिद वंश के विषय में ख्याति थी। वे पैगम्बर हजरत मुहम्मद के वंश परम्परा मे थे। पहले जैनुल आबदीन ने आगत सैयिद नासिर आदि को पैगम्बर बंशीय पूज्य एवं महागुणी जानकर, उन्नतासन प्रदान कर, स्पर्शादि से अतुल सत्कार किया और जिन्हे अपनी पुत्री प्रदान कर, सम्मान पूर्वक उन्हे राष्ट्राधिपति बना दिया। (३:१५३-१५४) राजा की पुत्री से विवाह के कारण, वह रूप आदि राष्ट्राधिपत्य के नित्य सुख को भोगने वाले, चिरकाल तक नृपवत् आचरण करते रहे।' (३:१५७) काश्मीर में द्विजों के प्रति आदर भाव था। द्विज अवध्य थे। विद्या के कारण पूजनीय थे। पठनपाठन, पूजा-पाठ उनका कार्य था। जो ब्राह्मण मुसलमान हो गये, वे भी अपनी उपाधि भट आदि नही त्यागे। सैयिदों ने इस स्थिति से लाभ उठाया। पैगम्बर वंशीय होने से उनके प्रति आदर अवश्य था किन्तु साधारण जनता में वे पूजनीय एवं श्रद्धा के पात्र नहीं बन सके। सैयिदों ने घोषित किया । वे हिन्दू ब्राह्मणों के समान मुसलमान ब्राह्मण है। बात जम गयी। इससे उन्हे सर्वत्र आदर मिल गया। काश्मीरी हिन्दू ब्राह्मण जन्मना ब्राह्मण होने का गर्व करते थे। इसलिये मुसलिम धर्म में परिवर्तित हिन्दुओं को म्लेच्छ कहते थे। सैयिदो की स्थिति हिन्दू ब्राह्मणो तुल्य हो गयी थी। इस भाव को श्रीवर प्रकट करता है-'इन मारे गये, राज सैयिदो को जो द्विज है, मैं कैसे देख सकूँगा? इसलिये मानो क्रोध से रुष्ट होकर, सूर्य लोकान्तर चले गये।' (४:८८) __ सैयिद अभिमानी हो गये । मर्यादा का उल्लघन करने लगे। वंश परम्परा की तथाकथित पवित्रता के कारण, सुल्तानों ने उनकी कन्या ग्रहण की। जैनुल आबदीन की रानी बोधा खातून सैयिद वंशीय थी। (१:७:४७) सैयिद उद्धत हो गये थे। जैनुल आबदीन ने कुछ सैयिदों को निष्कासित कर दिया। हसन शाह ने सैयिद जमाल आदि को उपद्रवी जानकर, पहले सम्पत्ति से वंचित किया। अनन्तर देश से निकाल दिया। सैयिद नासिर स्वयं देश त्यागकर, बाहर चलाभाया । सुल्तान की पुत्री से विवाह के कारण बहुरूप आदि राष्ट्राधिपत्य के सुखभोगी, जो चिरकाल तक नृपवत् आचरण करते थे, वे लोग भी दिल्ली आदि चले गये । बाहर जानेपर, वे सुखी नहीं रह सके, उनकी स्थिति बिगड़ती गयी। (३:१५५-१५८) सैयिद यद्यपि
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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