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________________ भूमिका सैयिदों ने आते ही राजदरबार में अपना प्रभुत्व रानी के माध्यम से बढा लिया। ताजभट्ट की स्त्री के अपहरण की इच्छा से, उसे बन्दी गृह मे डाल दिया। (३:३५२-६०) सैयिदों ने भेद नीति से सुल्तान को आयुक्त के विरुद्ध कर दिया। सुल्तान ने आयुक्त के प्रति, अपनी नाराजगी, राज-सभा में व्यक्त कर दी। (३:३६९-३७१) सुल्तान ने युसुफ खाँ को उसके अभिभावकत्व से हटाकर, जोन राजानक के अभिभावकत्व मे रख दिया। (३:३७७) सैयिदों की सहायता से ताजभट्ट ने मुक्त होकर, राजधानी का आगन रौंद डाला। (३:३८२) राजप्रासाद का पश्चिम द्वार जला दिया। (३:३८३) राजा ने मल्लिक के पुत्र नोरुज को कारा में डाल दिया। (३:३९७) सैयिदों के पूर्ण अधिकार प्राप्त करने की भूमिका तेयार हो गई । (३:३९९) आयुवत का सब धन हरण कर लिया (३:४०१) जहाँगीर ने पश्चात्ताप किया। कारागार मे जुग भट्ट उससे सुवर्ण संग्रह राजा के लिए माँगने गया। क्रुद्ध होकर, उसने उत्तर दिया-'दिशाओं में भागे हुए भयभीत सैयिदों को लाकर, मैंने (उन्हे) सम्बधित किया। इस राजा के कृतघ्न होने पर, वे ही मेरे द्रोही हो गये। (३:४१३) सैयिदों का मन बढ़ता गया। शोषण नीति अपनायी। सैयिदों के अधिकारी जन 'आनन्द पुष्प' 'दीनारखण्ड' की प्राप्ति आदि नामो से, प्रजा पीड़न पूर्वक, धन संग्रह किये। (३:४२२) सैयिदों ने अधिकार प्राप्त होते ही; दूतों को भेजकर, सैयद नासिर आदि को बाहर से बुलाया। (३:४२६) किन्तु नासिर काश्मीर में प्रवेश करते ही, ज्वर से मर गया (३:४२९) राजमहिषी के भाग्य रूप सौभाषय से, सम्प्राप्त विभव से ऊजित, सैयिद काश्मीरियों की तृण बराबर भी नही समझते थे । (३:४२३) राजा उनके आदेशों का आँख मूद कर पालन करता था । (३:४३४) राजमहिषी के कारण नारियों का प्राबल्य राज्य में हो गया। (३:४३५) स्त्रियाँ राजा की अन्तरंग हो गईं न कि मन्त्री तथा सेवक । (३:४७१) राज्य स्त्रियों के आधीन था। (३:४७५) सैयद तथा उनके अधिकारी घूस, कौशल पूर्वक प्रजा पीडन तथा स्त्री व्यसन में लिप्त हो गये। (३:४६) सैयिद अधिकारी राहु के समान, समस्त मण्डल को आक्रान्त कर लिए। (३:४७८) सैयिदो ने विरोधियों का संहार आरम्भ किया। (३:४४४) सैयिद मियाँ मुहम्मद जैनुल आबदीन का दौहित्र था। वह भी काश्मीर मे प्रभाव विस्तार करने लगा। (४:४४८) 'सैयिदों तथा भार्या के आधीन बुद्धि हीन राजा, भृत्य कार्यों मे तटस्थ और व्यवहार विशृङ्खलित हो गया । (३.४६९) काश्मीरी पुरुष रत्नों को सैयिदों ने उत्पाटित कर दिया। लोग प्राण रक्षा के लिए, बाहर चले गये। सैयिदों और काश्मीरियों में स्पर्धा हो गई। (३:४७७) श्रीवर लिखता है-'दुराग्रहों से ग्रस्त संस्कार वाला, वह मियाँ हस्सन विश्वस्तजनों के कहने पर भी, रावण के समान, सन्मार्ग पर नही चला (३:४८२) ।' सैयिदों के कारण परशुराम आदि मद्र देशवासी अपने अनिष्ट की आशंका कर, काश्मीर देश से बाहर जाने की आज्ञा माँगे (३:४९८) __ सैयिदों ने राजा को दुर्बल बना दिया। राजकार्य से मन हटाने के लिए, मृग समूहों का शिकार हेतु उसे ले गये । (३:५०३) श्रीवर एक काश्मीरी होने के कारण शोक प्रकट करता । सैयिदों के सेवकगण जनता के पशु तथा मद्य आदि अपहृत कर, अपना घर भरने लगे । (३:५१६) सैयिदों की अलग एक सभा मण्डली बन गई, जिसमें काश्मीरी नही थे । (३:५३३) सुल्तान हसन शाह मृत्यु-मुख हो गया। उसने सैयिद हस्सन को बुलाकर कहा-'मैं जीवित नहीं रहूँगा। मेरे शिशु राज्य योग्य नहीं हैं । बहराम खाँ का पुत्र बन्दी है। मेरे पुत्रों की रक्षा नही
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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