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________________ ७० जैन राजतरंगिणी मोक्षपत्र (खते रुखरात) : काश्मीर में हिन्दू राजाओं के समय से ही यातायात एवं आवागमन पर नियन्त्रण था। राज्य की सुरक्षा दृष्टि से यह व्यवस्था की गयी थी । यह व्यवस्था कुछ समय पूर्व तक प्रचलित थी। सुल्तानों के समय काश्मीर में आने के लिये राज्य अनुमति आवश्यक थी बहिर्गमन के लिये भी राजाज्ञा आवश्यक थी। दर्रो अर्थात् संकट किंवा द्वार पर आज्ञापत्र कड़ाई के साथ देखे जाते थे । मद्र के सैनिक काश्मीर मे थे । उन्हें जाने के लिये कहा गया उन्हे देखकर सत्ताधारी सैयिद शक्ति हो बोले-'प्रतिमुक्त दिये जाने पर भी (तुम लोग ) अपने देश को नही जा रहे हो ? किसलिये आये हो ?' इस प्रकार आगत उन लोगों को देखते ही हर्षपूर्वक सिंह भट्ट द्विज ने कहा तुम लोगों से हमे मार्ग मुक्ति पत्र नहीं प्राप्त हुआ है। हम लोग कैसे जाँय ?' – सैयिदों ने उत्तर दिया- 'आज तुम लोगों को प्रतिमुक्त (मोक्ष) पत्र मिलेगा ।' ( ४ : ४१-४२) C दल : श्रीवर ने फादमीर के तत्कालीन बलबन्दी का विस्तार से वर्णन किया है। राजानक, ठक्कुर, डामर, प्रतिहार, सैयद खसों का संगठित दल था। इनके अतिरिक्त प्रतिहार, सैयिद, माग्रे एवं चक्र (चकों) का सैनिक किंवा अर्ध सैनिक दल था। मद्रों का कोई दल नहीं था। लेकिन उनके सैनिक कायमीर की राजनीति को प्रभावित करते थे। वे प्रायः काश्मीर के किसी न किसी दल की पक्ष से सहायतार्थ बुलाये जाते थे। सत्ता प्राप्ति के लिये वे परस्पर संघर्ष करते थे । इन दलों में जबतक, काश्मीरी थे, देश के लिये खतरा नही था । परन्तु काश्मीरियों का एक दल, दूसरे पर अधिकार एवं उन्हें पराजित करने के लिये विदेशी मद्र, लस, तुरुष्क तथा सैविदों से सहायता लेने लगा। जो लोग काश्मीर के किसी दल की सहायता करने के लिये आये थे, वे स्वयं सत्ता हस्तगत करने का षडयन्त्र करने लगे । हिन्दू काल मे डामर एवं लवण्यों का दल था । वे काश्मीरी थे परन्तु मुसलिम काल मे विदेशी मुसलमानों के आगमन तथा उनके उपनिवेश काश्मीर मे बन जाने के कारण स्थिति सर्वदा विस्फोटक रहती थी। जैनुल आबदीन एवं उसके पुत्रों में संघर्ष के कारण एक ऐसा दल बन गया, जिसकी निष्ठा किसी एक के साथ नहीं थी। वे दोनों पक्षों से धन तथा वेतन लेते ये जैनुल आबदीन के अन्तिम चरण में दल बदल की अवस्था हो गयी थी—'आज जो अपने पास दिखाई दिये, प्रात ( हाजी ) खान के पास सुने गये, इस प्रकार सारस सदृश सेवक कहीं भी स्थिर नही हुए (१:७.१५२) '' सैयदों ने राजवंश से सम्बन्ध कर लिया था। उनकी प्रधानता दरबार में हो गयी । प्रभाव बढ़ गया सुल्तानों से जब उनकी कम्याओं के पुत्र होने लगे, तो उन्होंने मन्त्रित्व आदि उत्तरदायित्वपूर्ण पद प्राप्त किया । काश्मीरियों की बाते अखरने लगी । सैयिदों का झुकाव काश्मीरियों की अपेक्षा विदेशी मुसलिमों तथा अपने विदेशी भाई-बन्दों की ओर अधिक था काश्मीर मे हसन शाह तथा मुहम्मद शाह के समय स्पष्टतया दो दल हो गये । दोनों सत्ता प्राप्ति के लिये एक दूसरे के खून के प्यासे थे । काश्मीर गृहयुद्ध तथा संघर्ष में भस्म होने लगा । श्रीवर लिखता है - 'मार्गपति का एक पक्ष, ठक्कुरो का दूसरा, तीसरा राजानक का, दीप्ति में सब अग्नि के समान चमक रहे थे । ( ४:३५३) वह बालक राजा आत्मा के समान निष्क्रिय एवं साक्षी मात्र था । उस समय सम्पूर्ण राजतन्त्र मन्त्रियों द्वारा सम्पन्न होता था । ' ( ४०३५४ ) विदेशी हिन्दू काल से ही विदेशियों का आगमन काश्मीर में होने लगा था। सीमान्त अफगानिस्तान, फारस,
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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