SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 48
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भूमिका श्रीवर में विदेशों के तत्कालीन सुल्तानों का भी उल्लेख किया है इतिहास से उनकी प्रामाणिकता सिद्ध हो चुकी है उनमें विशेष उल्लेखनीय सुरासान के सुल्तान अबूसंद है। पंचनद के राजा ने ताजिक छोड़ा सुल्तान को भेंट किया था। वह मुल्तात का मित्र था (१:३:६) | मुगलों और जमू के राजा मे युद्ध हुआ था। उसमें सुल्तान जैनुल आबदीन का ज्येष्ठ पुत्र बहराम खाँ राजा के पक्ष से लड़ता मारा गया था। यह बात इतिहास से सिद्ध हो चुकी है । ( २:१० | समकालीन रचना : नोत्य सोम ने 'जैन चरित' (१:४:२०) योष भट्ट ने 'जैन प्रकाश' (१:४० ३८) भट्टावतार ने 'विकास' ( १ : ४:३०) जैनुल आबदीन ने 'शिकात ' (१:७ : १ने ६) लिखा था । 'सर्वलीला' प्रबन्ध देशी भाषा मे गीत ग्रन्थ था ( ३:२५६ ) | परन्तु उसके रचनाकार पर श्रीवर प्रकाश नही डालता । ३९ रचनाकाल : । प्रथम तरंग मे श्रीवर ने राजतरंगिणी एक साथ नही लिखी है। प्रथम दो तरंग उसने एक साथ लिखा था लिखता है। जैनुल आबदीन एवं उसके पुत्र वर साहू का वृत्तान्त वर्णन करना चाहता था प्रथम, द्वितीय एवं तृतीयतरंग श्रीवर ने मंगलाचरण एवं वन्दना के साथ आरम्भ किया है । परन्तु चतुर्थ तरंग मे वन्दना नहीं की गयी है । चतुर्थ तरंग तृतीय तरंग का रचना क्रम है। तृतीय तथा चतुर्थ तरंगो का एक वर्गीकरण किया जा सकता है । उसमे हसन शाह तथा मुहम्मद शाह का वृत्त वर्णन है । परन्तु द्वितीय एवं । प्रथम तथा द्वितीय धीवर प्रथम तथा तृतीय तरंगों में ग्रन्थ लिखने का उद्देश्य उपस्थित करता है चतुर्थ तरंगों में ग्रन्थ की योजना तथा उसके प्रणयन का कारण उपस्थित नही करता सरंग इसलिये एक और तृतीय तथा चतुर्थ तरंग दूसरे वर्ग में रखा जा सकता है। प्रथम तथा द्वितीय तरंग की रचना का एक काल तथा तृतीय एवं चतुर्थ तरंग की रचना का दूसरा काल है । प्रथम तरंग में चार सुल्तान के इतिहास वर्णन का उल्लेख, न कर केवल नृप एवं आत्मज शब्द का प्रयोग करता है । नृप से तात्पर्य जैनुल आबदीन तथा आत्मज से अर्थ पुत्र सुल्तान हैदर शाह से है। प्रथम तरंग में उसने जैनुल आबदीन के जोनराज द्वारा लिखित शेष वर्णन पूरा करने के लिये लेखनीं उठायी थी। उसके रचना का समय सन् १५५९ ई० के पश्चात् है उसकी योजना चाहे जोगराज के छोड़े कार्य को पूर्ण करने की क्यों न रही हो परन्तु योजना समयानुसार परिवर्तित होती गयी । जैनुल आबदीन के बारह वर्षों का इतिहास लिखना चाहता था । उसने (श्लोक १:१:१७ ) मे - 'सात्मजस्य नृपस्य ' लिखा है । तात्पर्य है । नृप के राज्य का वर्णन, उसके पुत्र सहित करना चाहता था । वहाँ उसने द्विवचन शब्द नृप के लिये नही प्रयोग किया है । इसका अर्थ है कि प्रथम योजना केवल एक नृप जैनुल आबदीन का चरित्र वर्णन मात्र था । उसे वर्णित कर, वह उसके पुत्र का भी वर्णन करना चाहता था । यदि हैदर शाह उस समय सुल्तान होता, तो नृप शब्द द्विवचन मे लिखता । आत्मज मात्र न लिखता । इससे प्रकट होता है कि प्रथम तरंग का आरम्भ उसने जैनुल आबदीन के समय किया था । = सर्व प्रथम वह शक संवत् १३८६ = लौकिक ( १ : १:७६ ) । निष्कर्ष निकलता है कि उसने इस समय के उसने जैनुल आबदीन के अन्तिम समय का विस्तार के साथ १५५९ के पश्चात् सन् १५६४ ई० का उल्लेख करता है । ४५४० = सन् १४६४ का पश्चात् ही रचना कार्य मे वर्णन किया है। सन् १४६४ ई० के उल्लेख करता है हाथ लगाया था । उसने जोनराज की मृत्यु सन् पश्चात् वह पुनः पीछे सन्
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy