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________________ जैनराजतरंगिणी कल्हण एवं जोनराज से सर्वथा भिन्न श्रीवर के इतिहास लिखने का प्रयोजन था। वह एक कुशल राजकवि के समान अपने स्वामी की कृषाओं, उपकारों का बदला, उनके चरित, उनके इतिहास, उनकी कीति को लिखकर, अमर कर, चुकाना चाहता था। प्रतीत होता है। श्रीवर जैनुल आबदीन तथा हैदरशाह के वत्तान्तों का वर्णन करना चाहता था। उसकी यही प्रारम्भिक योजना प्रतीत होती है। क्योंकि प्रथम तथा द्वितीय तरंग में उनका क्रमशः वृत्तान्त वर्णन किया गया है। द्वितीय तरंग के प्रारम्भ में वह अपनी रचना का कारण उपस्थित नहीं करता। तरंग तृतीय तथा चतुर्थ उसकी दूसरी योजना है। वह समझता था। उसका स्वतः हैदरशाह के राज्यकाल मे ढलती उम्र के कारण अवसान हो जायगा। हैदर शाह का राज्यकाल इतना लम्बा होगा कि वह ग्रन्थ की समाप्ति तक शायद ही जीवित रह सकेगा। तृतीय तरंग के प्रारम्भ में वह इतिहास लिखने का पुनः कारण उपस्थित करता है-'जिस नृपति (हसन शाह) की जीविका का भोग किया, प्रतिग्रह एवं अनुग्रह प्राप्त किया, श्रीवर पण्डित अपने को ऋण मुक्त होने के लिये, उसका वृत्तान्त वर्णन कर रहा हूँ।' (३:३) तृतीय तरंग का नायक सुस्तान हसन शाह है । श्रीवर को सुल्तान अपना गुरु मानता था। उसने श्रीवर पर अनुग्रह किया था। अतएव यह स्वाभाविक है कि श्रीवर ने हसन शाह के वृत्त वर्णन की योजना द्वितीय तरंग लिखने के पश्चात् बनायी थी। . चतुर्थ तरंग मे वह प्रथम तथा तृतीय तरंग के समान इतिहास लिखने का कारण उपस्थित नही करता। हसन शाह का ही पुत्र मुहम्मद शाह था। अतएव बालक सुल्तान के पिता के अनुग्रह का स्मरण कर, उसके वृत्तान्त लिखने की योजना बना ली। उसकी लेखनी मुहम्मद शाह के राज्यच्युत होने तथा फतह शाह के राज्य ग्रहण करने के साथ ही विश्राम करती है। यदि श्रीवर फ़तहशाह के राज्यकाल मे जीवित भी रहा होगा, तो उसने लिखने का प्रयास इसलिये न किया होगा कि फतहशाह का उस पर कोई अनुग्रह नहीं था। उसके स्वामी के पुत्र को फतहशाह ने राज्यच्युत किया था। राज्य उत्तराधिकार से नही बल्कि षडयन्त्रों एवं सेना के बल पर प्राप्त किया था। अतएव फतहशाह के प्रति उसका अन्य चारो सुल्तानों के समान आदर एव स्नेह न होना स्वाभाविक है। समकालीन इतिहास ज्ञान : श्रीवर ने समकालीन, सीमान्त, तथा भारत के राजाओं के विषय में कुछ सूचनायें दी है। आधुनिक अनुसन्धानो से वे ठीक उतरी हैं। कुछ का निश्चित पता अभी नहीं मिल सका है। आशा की जाती है। अनुसन्धान होने पर, उनकी ऐतिहासिकता सिद्ध होगी । सिन्धु के सुल्तान कायम दीन (१:७:४०, १:७.२०३). ग्वालियर के राजा डूंगर सिंह (१:६:१४), राजपुरी के जयसिंह (२:१४५), मद्र के राजा माणिक्य देव, (१:१:४७, २:१०७), काष्टवाढ के राजा दौलतसिंह (४:२:११), मेवाड़ के राणा कुम्भ (१:६:१३), ग्वालियर के राजा की मृत्यु पश्चात् वहां के राजा कीर्ति सिंह, दिल्लीपति बहलोल लोदी (१:६:१७), खुरासान पति अबूसैद (१:६:२४), गुजरात के सुल्तान महम्मद (१:६:२५), मद्रमण्डल के राजा अजयदेव (३:११८), राजपुरी के शृंगारसिंह (४:४१०), मद्र देशस्थ परशुराम (४:२६६), भोडन राजा भीमवर (४.२१७) का नाम श्रीवर देता है। इनके अतिरिक्त चिभ देश (२:१४८), शाहिभंग (४:२११), पंचनद जसरथ तथा उसके पुत्र शाहमसूद (१:७:६५), गौड़ (बंगाल), माडव्य (मालवा) (१:१:१०), सुराष्ट्र (सौराष्ट्र) (१:६:१७), दिल्लीपति बहलोल लोदी (१:६:१९७), इब्राहीम लोदी, वान्दर पाल (१:५९१) तथा मक्का, गिलान, मिश्र (१:६:२६), इराक के सुल्तानों (१:७:२९) का उल्लेख बिना उनका नाम दिये करता है।
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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