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________________ २३६ जनराजतरंगिणी [१:७:२२२-२२४ प्राणान्ते विगलत्सूर्यसोमनेत्रजलच्छलात् ।। निरगान्नरदेवस्य प्रजास्नेहरसो ध्रुवम् ॥ २२२ ॥ २२२. प्राणन्त होने पर विगलित सूर्य चन्द्ररूप नेत्र के जल के व्याज से निश्चय ही राजा का प्रजा-स्नेह रस निस्रित हुआ। द्वापञ्चाशतमब्दान् स राज्यं कृत्वा सुखप्रदम् । षट्चत्वारिंशवर्षेऽगादिवं श्रीजैनभूपतिः ॥ २२३ ।। २२३. वह जैन भूपति ५२ वर्ष सुखपूर्वक राज्य करके ४६ वे वर्ष स्वर्ग प्रयाण किया। कर्णीरथशवप्रोद्यच्छत्रचामरकैतवात् शुचेव पतितौ नून सूर्याचन्द्रमसौ दिवः ॥ २२४ ॥ २२४. करणी-रथ स्थित शव पर, चलते छत्र-चामर के व्याज से, मानों शोक के ही कारण, सूर्य एवं चन्द्रमा आकाश से निपतित हो गये थे। पाद-टिप्पणी: सुल्तान का जन्मकाल सन् १४०१ ई०, राज्यप्राप्ति२२२. (१) नेत्र जल : मार्ककण्डेयपुराण के काल १४१८ ई० एवं मृत्युकाल १४७० ई० अनुसार नेत्र से जल अचानक निकलने पर मनुष्य ठहरता है। को मरणासन्न समझ लेना चाहिए। मृत्यु उसकी पाद-टिप्पणी . लोला किसी समय समाप्त कर सकती है ( मा०: २२४ (१) करणी-रथ - शिविका । कल्हण ४३ : १-३३; ४० : १-३३)। ने करणी-रथ का उल्लेख (रा० : ४ : ४०७; ५ : पाद-टिप्पणी : २१९ ) में किया है। करणी-रथ शिविका के अर्थ २२३. (१) बावन वर्ष : पीर हसन के अनु- मे यहाँ प्रयोग किया है। काश्मीर में पालकी को सार मृत्यु के समय सुल्तान की उम्र उनहत्तर साल 'कत्त' कहते है । कत्त मैं समझता हूँ कि करणी का थी। उसने इक्कावन वर्ष, दो मास तथा तीन दिन अपा । देरशाह के सत्य प्रसंग में सात का राज्य किया था (पृष्ठ १८६ ) । तवक्काते अकबरी शिविका में रखा जाना श्रीवर वर्णन करता है में राज्यकाल ५२ वर्ष दिया गया है (४४६ = । (२ : २०८) किन्तु श्लोक (२ : २०९) मे ६७२)। फ़िरिश्ता राज्यकाल लगभग ५२ वर्ष शव को मंजूषिका से उतरने का उल्लेख करता है। देता है ( ४७४)। श्रीवर ने मंजूषिका ताबूत के अर्थ में प्रयोग किया (२)छियालीस वर्ष : सप्तर्षि ४५४६ % है। श्रीवर मृत्यु के समय उपस्थित था परन्तु सन् १४७० ई० = संवत् १५२७ विक्रमी = शक प्राणान्त के पश्चात वह शव ताबूत में रखने का १३९२ = कलि गताब्द ४५७१ वर्ष। तवक्काते वर्णन करने लगता है । शव के स्नानादि का वर्णन अकबरी में मृत्यु का काल नही दिया है। फिरिश्ता नहीं करता। मुसलिम परम्परा के अनुसार मृत्यु के लिखता है कि सुल्तान हिजरी ८७७ में मर पश्चात शव को नहलाते है । भारत में बैर की पत्ती गया। पानी में उबाल दी जाती है। उसी पानी से स्नान यदि श्रीवर की गणना ठीक मान ली जाय तो कराया जाता है। अरब में ठण्डे जल में बैर की
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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