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________________ २३७ १:७ : २२५-२२६ ) श्रोवरकृता तत्कालं मन्त्रिणो भृत्या दासा जनपदाश्च ये । रुदितानुस्रुतिव्याजान्निवापाञ्जलिमक्षिपन् ॥ २२५ ॥ २२५. उस समय मन्त्री, भृत्य, दास एवं जनपद निवासी, रोने के रुदिताश्रु प्रवाह के व्याज से, मानों विनयांजलि दिये। राज्यं षण्णवते वर्षे ज्येष्ठे मास्यग्रहीन्नृपः । उत्तरायणकालान्त स्तेनैवान्तर्धिमासदत् ॥ २२६ ।। २२६. राजा ने ९६ वर्ष के उत्तरायण काल के अन्त ज्येष्ठ मास में राज्य प्राप्त किया और उसी मास के साथ अन्तहित हआ। पत्ती पानी में घोलकर गाज पैदा करते है । उसी से प्राचीन परम्पराये मुसलिमकरण नीति के होते हुए नहलाया जाता है। कही-कही कपूर का. गुलाब या भी अपनायी थी। छत्र एव चामर राजाओं का केवडाजल छिडकते है। मुख तथा जोडो पर कपूर पुरातन चिह्न है। मुसलिम बादशाहों ने यह प्रथा मल देते अथवा रखते है। भारत मे स्वीकार कर लिया था। पाण्डू के कल्हण ने राजा शंकरवर्मा के शव को करणी-रथ दाहकर्म के समय शिविका मे शव ले जाया गया मे रखकर काश्मीर मे लाने का वर्णन किया है और उस पर छत्र और चमर थे (स्त्रीपर्व० : २३ : (रा० : ५ : २१९ ।। ३९-४२)। भीष्म पितामह के दाहकर्म का वर्णन करणी-रथ का तात्पर्य अरथी या शवयात्रा के महाभारत में किया गया है । शव के ऊपर छत्र एवं लिए अरथी आदि पर तैयार किया गया, रथानुरूप चामर लगे थे (अनुशासन० : १६९ : १०-१९)। सजावट करते है। आज भी जहाँ अरथी को सजा- पाद-टिप्पणी : कर ले जाते है, उसे रथ शब्द से ही अरथी की पाठ-बम्बई। जगह सम्बोधन करते है। पंजाब के खत्री लोग २२६ (१) वर्ष : सप्तर्षि ४४९६ = सन् सजी अरथी को विमान कहते है। १४२० ई० = विक्रमी १४७७ = शक १३४२ ई० । शिविका अर्थात पालकी का प्रयोग राजाओ (२) उत्तरायण : सूर्य की मकर रेखा से का शव ले जाने के लिये अबतक काशी मे उत्तर कर्क रेखा की ओर गति । ६ मास का समय किया जाता है। मैने अपनी आँखों से देखा है कि जिसके मध्य सूर्य मकर रेखा से चलकर निरन्तर काशीराज प्रभूनारायण सिंह का शव नन्देश्वर पैलेस उत्तर की ओर बढ़ता रहता है। मृत्यु किस समय से मणिकर्णिका स्मशान तक पालकी अर्थात शिविका होती है इसके विषय में अनेक धारणायें है। गीता पर ही गया था। काशीलाभ करनेवाले कितने तथा अन्य ग्रन्थों में उल्लेख मिलता है। कल्पतरु : ही राजाओं का शव शिविका पर ले जाते हुए देखा मोक्षकाण्ड तथा शान्तिपर्व २९८ : २३ में लिखा है। शिविका बनी-बनायी होती है। ताबूत भी है कि जो उत्तरायण में मरता है वह पुण्यशाली बना-बनाया होता है परन्तु विमान, अरथी एवं है। यह धारणा उपनिषद पर आधारित है-अस्तु रथ बनाया जाता है। चाहे उसकी अन्तेष्टि की जाय या नही, वह (२) छत्र चामर : जनाजा का उल्लेख श्रीवर प्रकाश को प्राप्त करता है। प्रकाश से दिन, करता है। काश्मीर के शाहमीर वंशीय सुल्तानों ने दिन से चन्द्रमा का शुक्लपक्ष, उसमें उत्तरायण ६
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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