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________________ श्रीवरकृता प्राणप्रयाणसमये नृपतिः स सर्वाङ्गनिर्यत्सौभाग्य भाग्यावृतमुखच्छविः ।। २१९ ।। २१९. प्राण प्रयाण के समय उस राजा को मैंने देखा, उसकी मुख को कान्ति, सभो अगा से निकलते, सौभाग्य-समृद्धि से आवृत थी। जाने तद्वदने लक्ष्मीसदने निर्याम्यतरङ्गिण्याः प्रवाह इव दिद्युते ।। २२० ॥ २२०. मालूम पड़ता है, लक्ष्मी सदन उसके बदन पर स्वेद परम्परा निकलती, भाग्य तरं गिणी के प्रवाह सदृश, शोभित हो रही थी । तज्जीव रत्नहरणाज्जातभीतिरिव प्राणवायुर्हरनायुः क्षणं तूर्णगतिं ध्रुवम् । व्यधात् ।। २२१ ॥ २२१. निश्चय ही उसके जीवनरूपी रत्न का हरण करने से भीत तुल्य, प्राणवायु आयु का हरण करते हुये क्षणमात्र के लिये गति तेज कर दी। 1 १७ : २१९-२२१ तवक्काते अकबरी मे मृत्यु का समय नही दिया गया है । फिरिश्ता लिखता है कि हिजरी सन् ८७७ के अन्त मे सुल्तान की मृत्यु हुई थी। उसकी आयु उस समय ६९ वर्ष थी। कर्नल ब्रिग्गस मृत्युकाल हिजरी ८७७ = सन् १७७२ ई० देते है । केम्ब्रिज हिस्ट्री में मृत्युकाल सन् १४७० के नवम्बर-दिसम्बर दिया गया है (२८४) । हैदर दुधलात लिखता है कि जैनुल आबदीन ने ५० वर्ष शासन किया था (तारीख रशीदी ४३३) । अबुल फमल तथा निजामुद्दीन के अनुसार सुल्तान ने ५२ वर्ष राज्य किया था और मृत्यु हिजरी ८७७ = सन् १४७२ ई० में हुई थी। (आइने जरेट: ३७९ का ३४४६) श्रीवर स्वय मृत्यु समय उपस्थित था । अतएव उसका दिया समय ही ठीक है । बहारिस्तान शाही श्रीवर का समर्थन करती है । पाण्डु० : फो० : ५८ ए० । : (२) प्राण त्याग शुक्रवार को मरना ईसाई तथा मुसलिम धर्म के अनुसार अच्छा मानते हैं । संसार के महान व्यक्तियों की मृत्यु प्रायः शुक्रवार को हुई है । ה मवेक्षितः । स्वेदसन्ततिः । २३५ पाद-टिप्पणी : अर्धसंगति के लिये ' सदन' का पाठ 'बदने सदने' किया गया है । २२० (१) स्वेद परम्परा शरीर की गर्मी निकल रही थी । गर्मी किंवा ऊष्मा समाप्त होने पर मरणासन्न व्यक्ति शीताक्रान्त हो जाता है। परोर से पसीना छूटने लगता है। यह अन्तिम लक्षण है । मनुष्य इस अवस्था ममुष्य इस अवस्था में मृत्यु के कुछ पष्टे पूर्व ही रहता है। पाद-टिप्पणी 1 २२१. (१) गति : ऊर्ध्व स्वाँसा या गति से तात्पर्य है मृत्यु के समय ऊर्ध्व स्वाँसा चलने लगती लगती है। स्वांसा की गति ऊपर की ओर हो जाती है । स्वॉस से आवाज भी निकलती है। पेट और छाती जल्दी-जल्दी फूलता और पचकता है। अ स्वाँसा मृत्यु का अन्तिम लक्षण है । ऊपर को चढ़ती हुई अथवा उलटी स्वाँस टूटने के पश्चात प्राण शरीर त्याग देता है । वायु का सम्बन्ध अपानवायु से छिन्न हो जाता है। स्वाँस की यह गति ऊपर होती कण्ठ तक आ जाती है। कण्ठावरोध होकर, प्राणवायु की गति समाप्त होकर, प्राणी मृत हो जाता है ।
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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