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________________ १ : ३ : २५-२८] श्रीवरकृता सीमोज्झिता चलन्मार्गा पङ्कातङ्ककलङ्किता । ___ स्थितिः कलियुगस्येव भूरभूज्जलपूरिता ॥ २५ ॥ २५. सीमा रहित एवं नष्ट मार्ग युक्त, पंक रूपी आतंक से कलंकित, जलपूर्ण भूमि कलियुग' की स्थिति सदृश हो गयी थी। तस्मिन्नवसरे धारासारं वर्षति वासवे । नौकामारुह्य भूपालो निरगाज्जनचिन्तया ।। २६ ॥ २६. उस समय इन्द्र के धारा वृष्टि करते रहने पर, राजा लोगों की चिन्ता से नाव पर, आरूढ़ होकर निकला। पश्यञ्जलान्तरे मग्नां कृषि कुशतरः शुचा । जनकारुण्यपुण्यात्मा विचार पतिः स्थलम् ।। २७ ।। २७. शोक से दुर्बल लोगों पर, दयाभाव के कारण, पुण्यात्मा राजा जल में डूबी, कृषि देखते हुए विचरण करता रहा। दृष्टानि यानि घोषेषु गहनत्वान्न जातुचित् । स्थानानि तानि भूपालो नौकारूढो व्यलोकयत् ।। २८ ॥ २८. ग्वालों की बस्तियों में गहन होने के कारण, जिन स्थानों को कभी नही देखा था, उन्हें नौकारूढ़ राजा ने देखा। रहती हैं। वरुणा की धारा प्रबल गंगा की बहती एवं सुविधाओं मे उलट-फेर होगा । शारीरिक, मानधारा से रुक कर उलटी बहती है। बारहमूला के सिक एवं नैतिक शक्तियों का पतन होगा। (द्रष्टव्य : पास जल निकलने का स्थान संकीर्ण है। वहाँ जल वन : १८८-१९०; हरिवंश० : भविष्य० : ३ : ५; अधिकता के कारण रुक सकता है या बाढ़ के कारण ब्रह्म : २२९-२३०; वायु० : ५८, ९९ : ३९१वृक्षादि बारहमला के जल बहिर्गमन मे अवरोध ४२८; मत्स्य० : १४४ : ३२-४७; कूर्म० : १ : ३०; उत्पन्न कर दिये थे अतएव जल का पीछे की ओर विष्णु पु० : ६ : १ . २ भागवत० : १२ - २ उठकर बहना स्वाभाविक है । ब्रह्मा० : २: ३१; नारदीय० : पूर्वार्ध : ४१ : २१पाद-टिप्पणी: ८८; लिंग० : ४०; नृसिंह० : ५४ : ११-४९)। २५. बम्बई का २४वां श्लोक तथा कलकत्ता पाद-टिप्पणी : का २३८वीं पंक्ति है। २६. बम्बई का २५वां श्लोक तथा कलकत्ता (१) कलियुग : कलियुग भी मर्यादा रहित का २३९वी पंक्ति है। एवं उचित मार्ग रीति-नीति रहित हो जाता है। पाद-टिप्पणी : भारतीय ग्रन्थों में कलि के सम्बन्ध में अत्यन्त २७. बम्बई का २६वां श्लोक तथा कलकत्ता निराशाजनक, अन्धकारपूर्ण एवं अत्यन्त हृदयस्पर्शी का २४०वी पंक्ति है । बाते कही गयी है। प्रमुख बातें है कि कलियुग मे पादटिप्पणी: शूद्र एवं म्लेच्छों का राज्य होगा। नास्तिक सम्प्र- २८. बम्बई का २७वां श्लोक तथा कलकत्ता दायों की प्रधानता होगी। जाति सम्बन्धी कर्तव्य का २४१वीं पंक्ति है। जै. रा. ११
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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