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________________ १:१:१५३-१५६] श्रीवरकृता पूर्व मया प्रतीहारमुख्या गुरुलघूर्जिताः । रणे फलतया दृष्टा रखेवृत्ते घना इव ।। १५३ ।। १५३. पहले मैंने रविमण्डल पर, मेघ के समान युद्ध में, छोटे-बड़े तेजयुक्त, प्रतीहार प्रमुख लोगों को, फलयुक्त होते देखा। ततो भूपबलात् क्रुद्धौ धात्रेयौ भूपतेर्हितौ । ठक्कुरौ निरगातां तौ वीरौ हस्सनहोस्सनौ ।। १५४ ॥ १५४. तदनन्तर राजा के सैन्य से क्रुद्ध होकर, राजा के हितैषी धात्रीपुत्र वे दोनों वीर, ठक्कुर हस्सन एवं हुस्सन निकल पड़े। सुवर्णसीहनग्राधा राजपुत्रा रणाध्वरे । शस्त्रज्वालावलीलीढे जुहुवुः श्रीफलं वपुः ॥ १५५ ॥ १५५. शस्त्रज्वाला-पुंज से भरे, रणयज्ञ में सुवर्णसीह', नग्र आदि राजपुत्र, शरीर श्रीफल की आहुति दिये। ते वीरभ्रमरास्तत्र रणोद्याने तदाभ्रमन् । स्वामिमाधवसान्निध्याद् यशःकुसुमलम्पटाः ॥ १५६ ॥ १५६. उस समय स्वामी माधव' (वसन्त ऋतु) के सान्निध्य से, यश कुसुम के लोभी, वे वीर रूप भ्रमर, उस रणोद्यान में भ्रमण कर रहे थे। पाद-टिप्पणी: परिचय के कारण निश्चय रूप से नही कहा जा १५३. कलकत्ता में 'वृत्तेर' पाठ है। प्रसंग मे सकता कि दोनों गंगा एक ही व्यक्ति है। उसका अर्थ ठीक नही बैठता 'भ्रम' के कारण 'रफ' (३) श्रीफल - बेल : काश्मीरी काव्यकार जोड़ दिया गया है। अतः 'वृत्ते' पाठ माना गया है। रण मे आहति बनने वालों की उपमा प्राय. श्रीफल पाट-टिप्पणी : से देते है। श्रीफल शिव का प्रिय फल है। उसे १५५. (१) सुवर्ण सीह : सुवर्ण सिंह, सीह आहति मे चढ़ाते है। वैशाख मास में श्रीफल शब्द सिंह के लिये कल्हण ने भी प्रयोग किया है। आयर्वेदिक दष्टि से खाना लाभप्रद होता है। शिवसिंह, सीह तथा सी समानार्थक शब्द है। लिंग पर विल्वपत्र तथा विल्व फल चढाया जाता है । (२) नग्र : इस व्यक्ति का पुनः उल्लेख पाद-टिप्पणी : नही मिलता। श्रीकण्ठ कौल ने गंगा नाम दिया है। बम्बई संस्करण जोनराजतरंगिणी में श्लोक ६२६ मे १५६. (१) माधव = वासन्ती कामदेव का गंगाराज का उल्लेख मिलता है। परन्तु यह समय मित्र वसन्त ऋतु-स्मर पर्युत्सुक एष माधवः (कु० : जैनुल आबदीन के पिता सिकन्दर का है। जैनुल ४ : २८) वसन्तकालीन सौन्दर्य जिसमे पृथ्वी आबदीन के पिता तथा उसके राज्यकाल में केवल कुसुमों से लद जाती है । आम, जामुन, नीव, अशोक ६ वर्षों का अन्तर है। अति संक्षिप्त उल्लेख एवं आदि फूलते है तथा पादप नवपल्लव धारण करते है।
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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