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________________ जैनराजतरंगिणी harset वीरो हाज्यखानाद्यो राज्ञा वाग्रजेन वा । गृहीत सर्वसैन्येन धैर्यात् क्रष्टुमशक्यत ॥ १४८ ॥ १४८. हाजी खाँ के अतिरिक्त दूसरा कौन वीर है, जो सेना सहित राजा या अग्रज द्वारा धैर्यत न किया जा सके । तत्र ५० मल्लशिलारङ्गसङ्गतास्तद्भटा नटाः । नाट्यभङ्गिमदर्शयन् ॥ १४९ ॥ त्वङ्गदङ्गविहङ्गानां १४९. उस मल्लशिला' रंगस्थल पर पहुँचकर, उसके भट रूप नट अंग संचालन करते हुए, विहंगमों की नाट्य भंगी प्रदर्शित किये । वर्ष शरधाराभिः स्फुरच्छस्त्रतडिज्ज्योतिस्तूर्यगम्भीरगर्जितः ।। १५० ।। १५०. वह राजा का सैन्य बादल, वाणधारा की वृष्टि की, जो कि चमकते शस्त्ररूपी विद्युत ज्योति एवं तूर्य के गम्भीर गर्जन से युक्त था । अन्योन्यमिलिताः कांस्यघनवत् कठिना घनाः । अन्योन्याघात सहना नदन्तः सुभटा बभुः ।। १५१ ।। १५१. परस्पर मिलित कॉसा के घन झाँझ सदृश कठिन घने, परस्पर घात सहनशील सुभट गरजते हुए शोभित हुये । भटा नयन्ति मां युद्धे मां मा ताडयत द्रुतम् । इतीव तारं दध्वान खानस्यानकदुन्दुभिः ।। १५२ ।। स भूपकटकाम्बुदः । १५२, ‘भट युद्ध में मुझे ले जा रहे हैं। मुझे मत पीटो' इस प्रकार मानो खाँन' की दुन्दुभी जोर से ध्वनि करने लगी । पाद-टिप्पणी : १४९. ( १ ) मल्लशिला : द्रष्टव्य टिप्पणी : ११ ११५ । फिरिस्ता नाम 'बुलील' देता है ( ४७१ ) कलकत्ता में ११५ श्लोक में 'पल्ल' नाम दिया गया है । परन्तु यहाँ मल्ल दिया है । अतएव ११५ में भी मल्ल ही पल्ल के स्थान पर दिया गया है । पाद-टिप्पणी : १५०. पाठ - बम्बई [ १ : १ : १४८ - १५२ पाद-टिप्पणी : १५१. पाठ-बम्बई पाट- टिप्पणी : १५२ (१) खान = हाजी खाँ श्रीवर ने हाजी खाँ को कायर चित्रित किया है। प्रतीत होता है कि हाजी खाँ को उसके सैनिक रण से पलायन नहीं करने देना चाहते थे। हाजी खाँ प्रारम्भ से युद्ध के प्रति द्विविधा में था। वह युद्ध नही करना चाहता था । उसके साथी जो सुलतान के विरोधी खुलकरू हो गये थे, अपने सुरक्षा तथा स्वार्थ के लिये युद्ध में रत थे । उनके लिये युद्ध के अतिरिक्त और कोई मार्ग नहीं रह गया था ।
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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