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________________ १ : १ : ६१-६५ ] श्रीवरकृत सौदर्यस्नेह वृक्षस्य मूलच्छेदनकारिणः । तेऽन्योन्यगोत्रजद्वेषात् तयोरासन् समत्सराः ॥ ६१ ॥ ६१. सहोदरता के स्नेह वृक्ष का मूलोच्छेद करने वाले, वे एक दूसरे के गोत्रोत्पन्नता के दोष से उन दोनों के ऊपर इर्षा भाव बनाये रखे । राजपुत्र स्त्रियस्तस्य गुणातिशयसुन्दराः । तत्कृतान्योन्यवैरेण समं वृद्धि समाययुः ।। ६२ ।। ६२. गुणों से अतिशय सुन्दर उसके वे तीनों राजपुत्र उनके किये गये पारस्परिक वैर के साथ वृद्ध हुए । देहसमो देशोऽयं तस्यात्मसमो महीपालः । तस्मिन् ससुखे सुखितो दुःखिनि तस्मिन् सदुःखोऽसौ ।। ६३ ॥ २५ ६३ यह देह के समान तथा राजा आत्मा के सदृश हैं, उसके सुखी होने पर सुखी तथा उसके दुःखी होने पर, वह दु:खी होता था । राजपुत्रयोर्मन्त्रिदुर्नयात् । अन्योन्यं सरुषो अभूज्ज्येष्ठकनिष्ठत्वं प्रक्रियारहितं तयोः ॥ ६४ ॥ ६४. मन्त्रियों की दुर्नीति के कारण, एक दूसरे के ऊपर क्रोध युक्त, उन दोनों राज पुत्रों प्रकृया रहित ज्येष्ठता एवं कनिष्ठता बनी रही । भूपतिः । आह स्मादमखानं स विदेशगमनत्वम् ।। ६५ ।। श्रुत्वाथ पुत्रयोः वैरमन्योन्यं जातु ६५. किसी समय राजा ने दोनों पुत्रों' विदेश जाने की बात कही । के पारस्परिक बेर को सुनकर, आदमखाँ से शीघ्र पाद-टिप्पणी : ६५. ( १ ) पुत्रो : फिरिस्ता लिखता है - 'जब वे पुत्र युवक हुए, तो तीनों राजपुत्र परस्पर इर्ष्या करने लगे, और उनमें खुले विद्रोह की भावना दिखायी पड़ने लगी । राजा ने उचित समझा कि उन्हें अलग कर दिया जाय । अतएव उसने आदम खां को एक बड़ी सेना देकर, तिब्बत आक्रमण करने के लिये भेजा ( ४७१ ) ।' जै. रा. ४ तवक्काते अकबरी मे उल्लेख है - ' कुछ समय पश्चात् सुलतान के पुत्र परस्पर विरोधी हो गये और उनमे संघर्ष उत्पन्न हो गया । आदम खा जो उनमें ज्येष्ठ था, एक बड़ी सेना के साथ काश्मीर त्याग कर, छोटे तिब्बत पर आक्रमण करने के लिये प्रस्थान किया ( ४४२ = ६६२-६६३ ) ।' ( २ ) बाह्यदेश : काश्मीर से बाहर के देशों के लिये श्रीवर ने बाह्यदेश की संज्ञा दी है ।
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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