SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 144
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ A २४ जैन राजतरंगिणी ज्येष्ठो लावण्यसौभाग्यसुभगैः जनकं रञ्जयामास चन्द्रमा इव ५७. लावण्य सौभाग्य से सुभग तथा प्राकृत गुणों से प्रसन्न किया, जिस प्रकार चन्द्रमा वारिध को । प्रत्यहं हाज्यखानः स कर्पूर इव बाललीलायितैस्तैस्तैः स्वमुदात्तमजिज्ञपत् तौ सुतौ सम्मतौ पित्रो स्वधात्रेयतया स्वस्थो प्राकृतैर्गुणैः । वारिधिम् ।। ५७ ।। [ १ : १ : ५७-६० ज्येष्ठ तुत्र ने पिता को उसी प्रकार का प्रयास किया । मन्त्रियों ने उसे राजा बनाना इस शर्त पर स्वीकार किया कि हाजी खाँ के पुत्र हसन खाँ को अपना युवराज बनाये । परन्तु इस बार पुनः उसने सशर्त राजा होना स्वीकार नहीं किया। दो बार उसने राज्य का उत्तराधिकार ठुकरा दिया। हसन खाँ के राज्यकाल में बन्दी बना लिया गया । अन्धा किया गया । बन्दीगृह में ही मर गया । सौरभैः । ५८. वह हाज्य खाँ, तत् तत् प्रतिदिन बाल-क्रीड़ाओं में अपना उदात्त गुण, उसी प्रकार ज्ञापित करता था, जिस प्रकार सुरभि में कर्पूर । तवकाते अकबरी में उल्लेख है : -- बहराम खाँ सबसे छोटा था । और उसे बहुत बड़ी जागीर सुलतान ने दी थी । ( ४४१-६६० ) । फिरिस्ता लिखता है - जैतुल आबदीन ने कनिष्ट पुत्र को बहुत जागीर देकर, उसे उसका शासक बना दिया था ( ४७९) । ।। ५८ ।। ५९. माता-पिता के प्रिय उन दोनों पुत्रों की रक्षा हेतु अपना धात्रीपुत्र होने के कारण स्वस्थ होकर, राजा ने दो ठक्कुरों' को अभिभावक बना दिया । रक्षणायाक्षिपन्नृपः । द्वयष्ठ+कुरपक्षयोः ॥ ५९ ॥ स्वपक्षस्थापनादक्षाः परपक्षेष्टखण्डनाः 1 तार्किका इव तेऽन्योन्यं धात्रेयाष्ठक्कुरा बभुः ॥ ६० ॥ ६०. तार्किक के समान, स्वयश स्थापन में दक्ष तथा दूसरे अभीष्ट पक्ष के खण्डन में सक्षम, वे धात्रेय ठक्कुर' परस्पर खण्डन- मण्डन में रत रहे । कैम्ब्रिज हिस्ट्री आफ इंडिया में उल्लेख है : 'जैनुल आबदीन ने पहले अपने अनुज मुहम्मद को अपना उत्तराधिकारी ( युवराज ) बनाया। उसके पश्चात उसके पुत्र हैदर खाँ को विश्वासपात्र बनाकर, पिता के स्थान पर नियुक्त किया। परन्तु जब उसे तीन पुत्र हो गये, तो उसे उत्तराधिकार से वंचित कर दिया (३ : २८२) । पाद-टिप्पणी : ५९. ( १ ). ठक्कुर : हस्सन तथा हुस्सन । पाद-टिप्पणी : ६०. ( १ ) ठक्कुर : द्रष्टव्य टिप्पणी : १ : १ ४४ तथा शुकराजतरंगिणी भाष्य पादटिप्पणी श्लोक :
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy