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________________ श्रीवरकृता इत्याहुर्ज्ञानिनोऽन्ये वा ये बुध्वा सच्चमूर्जितम् । तेषां प्रामाण्यमकरोत् स राजा च सविस्मयम् ॥ ५४ ॥ ५४ इस प्रकार ज्ञानी अथवा अन्य जो लोग कहे, उस तथ्य को जानकर, राजा ने विस्मयपूर्वक उनका विश्वास किया । ध्रुवं महानुभावत्वं विना जानीयात् कथमित्याह विद्वज्जन ५५. निश्चय ही महानुभावता के बिना गुप्त वृतान्त को राजा कैसे जान सकता' इस प्रकार उदार बुद्धि विद्वजनों ने कहा । १ : १ : ५४-५६ ] इत्युपोद्घातः अथ राजवर्णनम् ज्येष्ठमादमखानं च हाज्यखानं च बहमखानमनुजं गीता का भाव प्रकट किया है : वासांसि नवानि जीर्णानि गृह्णाति शरीराणि तथा न्यन्यानि संयाति व्यवहितं नृपः । राज्य वर्णन : ५६. उस राजा ने ज्येष्ठ आदम खाँ, हाज्य खाँ तथा कनिष्ट बहराम' खाँ नामक पुत्रों को पैदा किया । यथा विहाय नरोपराणि । विहाय जीर्णानवानि देही ॥ ( गीता : २ : २२ ) मध्यमम् । पार्थिवोडजीजनत्सुतान् ॥ ५६ ॥ उदारधीः ॥ ५५ ॥ पाद-टिप्पणी : ५६. ( १ ) आदम खाँ : जैनुल आबदीन का ज्येष्ठ पुत्र था । सुल्तान ने इसे प्रारम्भ में युवराज बनाया, पुनः पद से हटा दिया। इसने कभी राज्य नहीं पाया। हाजी खाँ जब सुल्तान बन गया, तो काश्मीर छोड़ कर भागा। मद्रप्रदेश की ओर युद्ध करता, शत्रुओं द्वारा मारा गया । इसकी लाश हाजी खाँ ने मँगा कर, उसके पिता के समीप दफन करवा दिया। आदम खाँ कभी राज्य नहीं प्राप्त कर सका। उसका पुत्र फतहशाह काश्मीर का बारहवाँ सुल्तान हुआ था । वह काश्मीर के सिंहासन २३ पर तीन बार बैठा और उतारा गया। उसकी भी मृत्यु काश्मीर से बाहर हुई थी । तवकाते अकवरी में उल्लेख है - आदम खाँ सबसे बड़ा था किन्तु वह सर्वदा सुल्तान की दृष्टि में तुच्छ दृष्टिगत होता था ( पृ० ४४१ ) । फिरिस्ता लिखता है - ज्येष्ठ पुत्र आदम खाँ को सर्वदा जैनुल आबदीन नापसन्द करता था । (२) हाजी खाँ : हैदरशाह के नाम से काश्मीर का नव सुल्तान था सन् १४७० ई० से १४७२ ई० तक काश्मीर का शासन किया था। फिरिस्ता लिखता है कि द्वितीय पुत्र हाजी खाँ को वह पसन्द करता था ( ४७१ ) । (३) बहराम खाँ : सुल्तान जैनुल आबदीन का तृतीय पुत्र था। जैनुल आबदीन उसे अपना उत्तराधिकारी बनाना चाहता था। उसने अपनी मूर्खता से पिता की आज्ञा ठुकरा दिया। हाजी खाँ की मृत्यु के पश्चात्, उसने राज्यसिंहासन प्राप्त करने
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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