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________________ १:१:३८-३९] श्रीवरकृता आदिश्य कृष्य वास्तव्यान् श्वपचादीन् स तस्करान् । मृत्कर्माकारयद् बद्धपादायः शृङ्खलान् बलात् ॥ ३८ ॥ ३८. उसने निवासियों को कृषि हेतु आदेश देकर चोर', चाण्डाल आदिके पैरों को शृङ्खलाबद्ध कराकर, उनसे बलात् मृत (मिट्टी) का कार्य कराया। न कः प्रवर्तते चौयें नीचो वृत्तिकदर्थितः । इति कारुणिको राजा तेभ्यो वृत्तिमकल्पयत् ।। ३९ ॥ ३९. जीविकात्रस्त कौन से नीच चौरकार्य' में प्रवृत्त नहीं होते ? अतएव कारुणिक राजा ने उनके लिये वृत्ति प्रदान किया। में प्रचलित थी। एक प्राचीन मापदण्ड है जिसकी परिवर्तन के पश्चात् भी जातिप्रथा बनी रही। जाति लंबाई एक हाथ होती थी। सुलतान ने कृषकों पर मे ही विवाह आदि होता था। जाति के बाहर से अतिरिक्त कर हटा दिया, जिसके कारण राज- विवाह करना अपवाद था। समाज में सबसे निम्न अधिकारी कृषकों को उत्पीडित करते थे ( म्युनिख श्रेणी में चाण्डाल तथा चमार थे । चाण्डाल चौकी: ७० ए०; तवक्काते अकबरी : ३ : ३४६ )। दारी का काम करते थे। वे वध किये तथा युद्ध में पाद-टिप्पणी: मारे गये, लोगों का शव उठाते थे। ३८. (१) चोर : द्रष्टव्य : म्युनिख : पाण्डु० : तवक्काते अकबरी में उल्लेख मिलता है७२ ए० 'चोरों से सुलतान ने मिट्टी का काम लिया'। सुल्तान चोरों की हत्या न कराता था, अपितु उसने उनसे मिट्टी ढुलवाया। आज भी जेल में कैदियों आदेश दिया था कि उनके पाँवों मे बेड़ियाँ डालकर से मिट्टी तथा कृषि कार्य लिया जाता है। उन्हे उनसे भवन निर्माण का कार्य कराया जाय और जेल से बाहर राजकीय प्रतिष्ठानों में राजगीर, मिट्टी उन्हें भोजन प्रदान किया जाय, (पाण्डु० . ४३८ )। ढोने तथा अन्य कार्यों के लिये, उनके एक पैर में पाद-टिप्पणी : लोहे का कड़ा डालकर भेजा जाता है। कड़ा में ३९. (१) चौरकार्य : श्रीवर ने आधुनिक एक छोटी लोहे के मुद्रिका रहती है। उससे राजनीतिक आदर्श सिद्धान्त लेखकों के समान लिखा ध्वनि होती रहती है। यदि चोर भागे तो पकड़ा है। मनुष्य का वातावरण एवं अवश्यकताएं, उस जा सकता है। आइने अकबरी में उल्लेख मिलता कूपथ की ओर प्रवृत्त करती है। जीविकाहीन व्यक्ति है कि सुलतान ने चोरों को बेड़ी पहना कर, काम । अपने कुटुम्ब के भरण-पोषण के लिये द्रव्य चाहता पर लगाया ( पु० ४४०)। है। अपने कुटुम्ब मे पहुँचता है, तो उसके बच्चे (२) चाण्डाल : चाण्डालों को कृषि कार्य आदि उसे घेर लेते है । उनकी भूख वह नहीं देख पर लगाया। चाण्डाल, जरायम पेशा उत्तर भारत में सकता है। उनके तथा कुटुम्ब किंवा अपनी जीवन माने जाते है। वे कही घर बनाकर नहीं रहते। रक्षा के लिये चोरी करता है। समाज उसे अपराध उन्हें तथा मुशहरों को घरों में रहने की आदत डलाई मानता है। दण्ड देता है। परन्तु यह समस्या का जा रही है। सुल्तान ने यह सुधार कार्य आज से निराकरण नही है। उसे दण्ड देकर, उसे बन्दो पाँच शताब्दी पूर्व किया था। जैनुल आबदीन के बनाकर, उसके कुटुम्ब को असहाय बना दिया जाता समय प्रायः सभी हिन्दू मुसलमान हो गये थे। धर्म है। उसके अपराध के कारण समाज केवल चोर
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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