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________________ जैनराजतरंगिणी [१:१:४० चक्रादीन् क्रमराज्यस्थान् दुष्टान् ज्ञात्वा स तद्भुवम् । हृत्वा मडवराज्यान्तदत्तवृत्तीन्न्यवेशयत् ॥ ४० ॥ ४०. क्रमराज्य' में स्थित चक्र आदि दुष्टों को जानकर, राजा ने उनकी भूमि अपहृत तथा उन्हें वृत्ति प्रदान कर, मडव राज्य में प्रविष्ट किया। को ही दण्ड नही देता अपितु उसके कुटुम्ब को, विभाजन रेखा, शेरगढी राज प्रासाद है । मराज पूर्व उसके आश्रितो को दण्डित करता है । अपराध करता तथा क्रमराज पश्चिम मे था। है काई एक और परिणाम भोगता है कोई दूसरा। (२) चक्र = चक . श्रीवर पूरा नाम नहीं चोरी न करे, बेकार न रहे, अतएव चौरकर्म के तापस देता। पीर हसन के वर्णन से कुछ प्रकाश पड़ता हैमौलिक कारण को राजा ने समझकर, उसका 'इन्ही आयाम मे पाण्डुचक, जो चक कबीला का मौलिक निराकरण किया। चोरों को जीविका देकर, सरदार था और अपनी कौम और खानदान साहत उनकी बेकारी तथा उनकी विषम समस्या का हल तरहगाम से सकुनत करता था, जब देखा कि जैनाकिया। समाज मे इस प्रकार सुल्तान ने मौलिक शाह ने जैनागिर के बागान आबाद कर दिये हैं सुधार कर, दूरदर्शिता का परिचय दिया था। और कि अकसर औकात वही यह रहता है, तो श्रीवर ने पुरातन सिद्धान्त को दुहराया है। इस ख्याल से कि बादशाह के यहाँ रहने से उसकी शान्तिपर्व महाभारत (१ : १६५ : ११-१३); मनु कौम को तकलीफ पहुँचेगी, अपने मददगार आर (११ : १६-१८) तथा याज्ञवल्क्य ने चोरी को साथियों की एक जमात के साथ रात के मौका पर दण्डनीय अपराध नही माना है । यदि कोई व्यक्ति शाही इमारतों को आग लगा दी। सुल्तान जैनुल तीन दिनों तक बिना अन्न रहे, तो उसे अधिकार आबदीन ने ज्योंही ये खबर सूनी, फौरन लश्करकशी था कि चौथे दिन कहीं से भी चाहे वह खेत, खलि- के जरिया मौजा तरहगाम को जलाकर, खाक कर हान अथवा घर हो, एक दिन के भोजन के लिये दिया और पाण्डचक मय अपनी कौम-कबीला के वस्तु चोरी कर सकता था। पूछने पर उस व्यक्ति दारद की तरफ भाग गया। सुल्तान ने मुनहदिम को चोरी का वास्तविक कारण बता देना उचित इमारतों को अज सरे नौतामीर किया। पाण्डुचक है। व्यास ( स्मृतिचन्द्रिका ) ने विपत्ति के समय ने दोबारा फरसत पाकर इन इमारतों को आग भोजन के लिये चोरी करना अपराध नहीं माना है। लगा दी। और भाग गया।' __काश्मीर में चकवंश ने राज्य किया था। उनका पाद-टिप्पणी: वर्णन शुक-राजतरंगिणी के प्रक्षिप्त भाग में है। अन्तिम ४०. (१) क्रमराज्य . कमराज = कामराज । चक राजा याकूब शाह ( सन् १५८६-१५८८ ई०) काश्मीर उपत्यका हिन्दू काल में दो शासकीय भागों से अकबर ने राज्य प्राप्त किया था। शाहमीर वंश में विभाजित थी। उन्हें क्रमराज्य तथा मडवराज्य के अन्तिम राजा हबीबशाह को सन् १५६० ई० में कहा जाता था। अकबर के समय अबूफजल ने भी हटाकर, गाजीचक ( सन् १५६०-१५६१ ई०) ने इन्हीं दोनों विभागों को माना है। जैनुल आबदीन राज्य प्राप्त किया था। चक वंश का राज्य केवल के समय में भी यही स्थिति थी। क्रमराज्य में ४० वर्षों काश्मीर में था। चक्र लोग कालान्तर में श्रीनगर से वितस्ता के अधोभागीय दोनों तटीय मुसलमान हो गये, तो उनका नाम चक पड़ गया, जो जिले आ जाते थे। जो वर्तमान काल में दोनों की चक्र का अपभ्रंश है।
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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