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________________ १:१:२५] श्रीवरकृता पतजलि महाभाष्य तथा प्रयाग के समुद्रगुप्त के तथा दक्षिणा पथ मे रखता है। विष्णु, कूर्म तथा अभिलेख मे आभीरों का उल्लेख किया गया है। ब्रह्म पुराण उनका स्थान अपरान्तक मानता है। विनशान नामक स्थान मे जहाँ सरस्वती नदी मरुभूमि भागवतपुराण, उन्हे सौवीर तथा आनत मध्य राजस्थान में विलीन हो जाती थी, आभीर निवास रखता हैकरते थे। अन्य स्थान पर आभीर को अपरांत का मरुधन्वमति क्रम्य सौवीराभीर योपरान् । निवासी बताया गया है । यह स्थान भारत का आनत्तीन् भार्गवोयागाच्छ्रान्त वाहो मनाग्वेिभु.॥ पश्चिमी तथा कोकण का उत्तरी भाग माना जाता था। पेरिप्लस तथा प्तोलेमी के अनुसार सिन्ध नदी संगीत शास्त्र में आभेरी, आभीरी तथा आभीके अधोभागीय उपत्यका तथा सौराष्ट्र के मध्य रिका तीन रागों का उल्लेख मिलता है। किन्तु उनमें उनका निवास स्थान था। एक मत है कि सिन्ध के आभीरी प्रसिद्ध है । श्रीवर ने इसे आभीरी राग का अधोभागीय तथा राजस्थान के मध्य उनका निवास उल्लेख किया है। छन्द बैठाने के लिये आभीरी के स्थान पर आभीर लिखा है। इस राग की परिभाषा स्थान था। सौराष्ट्र का मैने भ्रमण किया है। की गयी है : सौराष्ट्र की भूमि देखने पर वह जैसे राजस्थान की भूमिखण्ड का विस्तार ही प्रतीत होता है । शुद्ध पंचम संभूता गमक स्फूर्णान्विता । आभीरी गम हीना स्याद् बहुला पंचमेन ।। ___आभीर देश जैन श्रमणो के बिहार का केन्द्र था । अचलपुर (एलिचपुर-वरार) इस देश का प्रसिद्ध इस राग में शुद्ध पचम स्वर स्फुरित गमक नगर था। वहाँ कण्हा ( कन्हन ) तथा वेष्णा (बेम) लगता है। इस राग में 'ग' 'म' स्वर नहीं लगते। नदी के मध्य बहादीप नामक दीप था। तगराग पंचम स्वर का बहुत प्रयोग किया जाता है। जिला उस्मानाबाद इस देश का सुन्दर नगर था। मातंग ( पांचवीं से सातवी शताब्दी) काल से शक राजाओं के सेना में वे सेनापति पद पर अबतक लिखे गये सभी ग्रन्थों में आभीरी - कार्य करते थे। अनेक शिलालेखों में आभीरों का अहीरी = राग का उल्लेख मिलता है। मातंग ने उल्लेख मिलता है । नासिक के शिलालेख मे आभीर आभीरी गीत का वर्णन किया है। राजा ईश्वरसेन का उल्लेख मिलता है। भिलसा (४) गौड़ : देश तथा राग दोनों है। तथा झाँसी के मध्य अहीरवाड़ प्रदेश है। यह आभीर- गौड़ राग का उल्लेख हृदयकौतुक ग्रन्थ मे है। बार का अपभ्रंश है। यह राग अब प्रचार में नही है। इसकी परिभाषा प्राचीन जैन साहित्य में आभीर एवं आभीरियों । की अनेक गाथायें लिखी मिलती है । दूसरी तथा सरी म पौ स सौ स श्च निपौ मगौ म री च सः । तीसरी शती मे अपभ्रंश भाषा आभीरी के रूप में गौड़ : षड्व रागस्तु कथ्यते रागवेदिभिः प्रचलित थी और सिन्ध, मुलतान तथा उत्तरी पंजाब स रे म प स नि प म ग म रे स । में बोली जाती थी। (४) गौड़ . आधुनिक पठित वर्ग गौड़ से अर्थ मत्स्य तथा पद्मपुराण आभीरों का स्थान बंगाली भाषा-भाषी क्षेत्र लगता है । मूलतः गौड़ उदीच्य मानता है। वायु, ब्रह्माण्ड एवं मारकण्डेय- देश मुर्शिदाबाद जिला तथा मालदा जिला के धुर पुराण उदीच्य के साथ उन्हे दक्षिणापथ का निवासी दक्षिणी भाग तक माना जाता था। हुवेन्त्सांग ने मानता है। वामनपुराण उन्हे उदीच्य, मध्यदेश कर्णसुन्दर देश तथा राजा शाशनिक की राजधानी
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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