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________________ जैनराजतरंगिणी [१:१:२५ दोनों के लिये प्रयोग किया है। राजा शाशनिक ने मुसलिम काल के अनेक ध्वन्सावशेष यहाँ बिखरे थानेश्वर के राजा राजवर्धन का सन् ६०५ ई० में पडे है । प्रसिद्ध सोना मसजिद प्राचीन मन्दिरों के वध किया था। बाण ने हर्षचारित में इसका ध्वन्सावशेषो से बनायी गयी है। यह मसजिद पुराने उल्लेख किया है। चीनी पर्यटको के वर्णनों से प्रकट टूटे दुर्ग में स्थित है। इस मसजिद की निर्माण होता है कि प्रसिद्ध बौद्ध रक्तमत्तिका विहार कर्ण- तिथी सन् १५२६ ई० है। नसरत शाह की मसजिद सुन्दर के उपनगर में स्थित था। इस देश का क्षेत्र- सन् १५३० ई० की निर्माण है। फल ७३० या ७५० वर्ग मील था। यह विहार में श्रीवर ने बंगाल एवं गौड दोनों शब्दों इस समय रंगमाटी कहा जाता है। मुर्शिदाबाद के का प्रयोग किया है। मुसलिम काल में गौड़ की लगभग ११ मील दक्षिण है। संज्ञा सूबा बंगाल थी। गौड़ उसकी राजधानी थी। (द्रष्टव्य : टिप्पणी : रा० : ४ : ४६८ ले० ।) भविष्यपुराण ने गौड़ देश के नामकरण के (५) कर्णाट : कर्णाट प्रदेश तथा राग दोनों विषय में लिखा है कि वह देश गौडेश देवता के है । कर्णाट प्रदेश के लिये द्रष्टव्य है : परिशिष्ट 'त' के क्षेत्र पद्मा एवं वर्धमान नदियों के मध्य में है। उसे कर्णाट, राजतरंगिणी : कल्हण खण्ड १ (श्लोक रा० : पुण्ड्र देश के सात देशों मे एक माना है। परम्परा १:३००.५० ११४ )। के अनुसार गौड़ देश वर्तमान मुर्शिदाबाद, जिला कर्णाट राग को हरिकाम्बोजी मेल का राग कुछ भाग नदिया, हुगली और वर्दवान डिविजन माना गया है। लोचन ( पन्द्रहवी शताब्दी ) तिरहुत बंगाल का था। पुण्ड्र देश पश्चिमी तथा उत्तरी ने रागतरंगिणी नामक ग्रन्थ लिखा है। उसमे उल्लेख बंगाल तथा विहार के कुछ पूर्वीय जिले थे। शक्ति है। संगीत-पारिजात सतरहवी शती का ग्रन्थ है। संगम तन्त्र में जिसे हम मध्ययुगीय गौड कह सकते उसने कर्णाट को कानड़ा राग माना है। उत्तर हैं, गौड़ देश बंग तथा भुवनेश्वर के मध्य माना। भारत में यह राग 'खम्माच' कहा जाता है। भारत गया है। कुछ मुसलिम इतिहासकारो ने पूर्वीय बंगाल में मसलिम शासन स्थापित होने के पश्चात् रागों मे को बंग तथा पश्चिमी बंगाल को गौड़ मानते थे। एक साम्यता किंवा रूपता, आवागमन एवं सम्पर्क कळ असलिम इतिहासकारों ने गीड़-बंग नाम भी के अभाव में नहीं रह गयी थी। कर्णाट राग की दिया है। परिभाषा की गयी है : शुद्धा. सप्त स्वरास्तेषु गांधारो मध्य मस्य चेत् । बंगाल पर मुसलमानों का राज्य स्थापित होने पर बंगाल की राजधानी कभी गौड और कभी गृह्णाति दे श्रुती गीता कर्णाटी जायते तदा । पाडुवा रही है। पाडुवा गौड़ से बीस मील दूर (लोचन रागतरंगिणी) सा रे ग म प ध नि । स्थित है। मुसलिम काल मे वहाँ के मन्दिरों आदि ध्वन्सावशेषों से मसजिदे तथा जियारतों का निर्माण कुछ लोग कानड़ा को कर्णाट राग मानते है । हुआ है। सन् १५७५ ई० मे सम्राट अकबर के संगीत-पारिजात में परिभाषा दी गयी हैसूबेदार ने गौड़ के सौन्दर्य पर मुग्ध होकर, राजधानी तीब्र गान्धार सम्पन्ना मध्यमोद् ग्राह धान्तिमा । पाडवा से हटा कर गौड़ में स्थापित किया था। सांश स्वरेण संयुक्ता कानडी सा विराजते । कालान्तर मे महामारी के कारण नगर परित्यक्त जिसमें गाधार तीव्र लगता है। मध्यमा स्वर पर कर दिया गया। तत्पश्चात् तीन-सौ वर्षों तक नगर, ग्राह और धैवत पर न्यास होता है। षड्ज जिसका जंगलों एवं खंडहरों के भयावने रूप में स्थित रहा। अंश होता है। वह कानडी अर्थात कानड़ा है।
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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