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________________ (७१) पिचहत्तरि कोडाकोडी हैं ६६९७५०००००००००००००० इतना एक चंद्रमाका परिवार है ॥ ३६२ ॥ आगे अध्यासी ग्रइनिका नाम आठ गाथानि करि कहैं हैंकालविकालो लोहिदणामो कणयक्ख कणयसंठाणा ।। अंतरदोतो कचयवदुंदुभिरत्तणिहरूबाणिभासो ॥ ६६३ ॥ कालविकालो लोहितनामा कनकाख्यः कनकसंस्थानः ॥ अतरदस्ततः कचययः दुंदुभिः रत्ननिभः रूपनिर्भासः ॥३६३ अर्थ-~~-कालविकाल १ लोहित १ कनक १ कनकसंस्थान १ अंतरद १ कवयव १ दुदुभि १ रत्नानिभ १ रूपनि स १ ॥३६३॥ णीलो णीलभासो अस्ससहाण कोस कंसादी ॥ वण्णा कंसो संखादिमपरिमाणो य संखवण्णोचि ॥३६४॥ नीलो नीलाभासोऽश्वस्थानः कोशः कंसादि । वर्णः कंसः शंखादिपरिमाणः च शंखवर्णोऽपि ॥ ३६४ ॥ अर्थ-नील १ नीलाभास १ अश्व १ अश्वस्थान १ कोश १ कंसवर्ण १ कंस १ शंखपरिमाण १ शंखवर्ण १ ॥ ३६४ ॥ तो उदय पंचवण्णा तिलो य तिलपुच्छ छाररासीओ ॥ तो धूम धूमकेदि गिसंठाणक्खो कलेवरो वियडो ॥३६५॥ ततः उदयः पंचवर्णस्तिलश्च तिलपुच्छः क्षारराशिः ॥ ततो धूमो धूमकेतुः एक संस्थानः अक्षः कलेवरो विकटः॥ अर्थ---उदय १ पंचववर्ण १ तिल १ तिलपुच्छ १ क्षारराशि १ धुम १ धूमकेतु १ एक संस्थान १ अक्ष १ कलेवर १ विकट १ ॥ ३६५ ॥
SR No.010018
Book TitleJain Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankar P Randive
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year1931
Total Pages175
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size7 MB
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