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________________ (१२६) - - प्रमाण है । बहुरि उत्तरा फाल्गुनी, विशाखा, उत्तरापाढा ये तीन उत्कृष्ट नक्षत्र है । सो इन सर्व भक्तिकालनिको जोस सूर्य दक्षिणायनविप एकसौ तियासी दिन हो। बहुरि अब चंद्रमाका कहिप हैं। पूर्वात महार चंद्रमाका भुक्तिकाल इकईस दिनका सतसटिवां भाग प्रमाण रयाई. तिस चंद्रमाहीक 'जघन्य मध्य उत्कृष्ट नक्षत्रनिका भुक्तिकालविपं.श्रवण आदि पुनर्वसु पर्यंत नक्षत्रनिकी पूर्वोक्त प्रकरर मुक्तिल्याइ.तिहविर्षे सर्वत्र. सदसठिको भाजक. करि भाज्यका अपवर्तन करि बहुरि भाजक तीस भर माज्यका - जघन्य. उचट नक्षत्रनिका. पंद्रहकरि अपवर्तनकरिअर मध्यमनिक तीसके. अपवर्तनकरि जो जो पावै सो सो तिस तिस नक्षत्र विर्ष स्थापन करना । बहुरि पुप्यवि सूर्यके मुक्ति सतमठि दिनका पांचवां भाग मात्रविष. चंद्रमाके भुक्ति एक दिन प्रमाण होइ तो पुप्यवि सूर्यकतेईस दिनका. पांचवां भागविः चंद्रमाकै केती होइ. ऐसे राशिक करि आई. जो तेईसका सतसठिवां भाग भाग प्रमाण भुक्ति सो उत्तरायणकी समाप्तताविक् दैनी ऐसेही दक्षिणायनविय विधान करना । भावार्थ-चंद्रमाकै उत्तरायणविर्षे पहले. अभिजितकी मुक्ति हो । ताका काल इकईस दिनका सतसठिवां भाग मात्र है । पीछे श्रवण आदि. पुनर्वसु पर्यंत. नक्षत्र क्रमत भोगिए हैं। तहां तीन जघन्य नक्षत्रनिवि-एक एकका भुक्तिकाल- अर्थ दिन है सात मध्य नक्षत्रनिविर्षे एक एकका मुक्तिकाल. एक दिन: है। तीन उग्कृष्ट नक्षत्रनिविर्षे एक.. एकका भुक्तिकाल ड्यौढ दिन है । बहुरि तहां पीछे पुष्य नक्षत्रका - भुक्तिकाल एक दिनवि तेईसः दिनका सतराठिवां भाग कालप्रमाण. पुष्य नक्षत्र भोगिए हैं। ऐसें सर्वकाल. जो चंद्रमाका. उत्तरायणवियः तेरह दिन अर चवालीसके सहसठिवा भाग मात्र काल होह! . बहुरिदक्षिणायनविर्षे पहले पुष्य नक्षत्र भोगिएं हैं तहां पुण्य
SR No.010018
Book TitleJain Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankar P Randive
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year1931
Total Pages175
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size7 MB
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