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________________ सडसठि दिनका दशवां भाग प्रमाण है । बहुरि श्रवण १ घनिष्ठा १ पूर्वाभाद्रपदा १ रेवती १ अश्विनी १ कृत्तिका मृगशीर्षा ए सात मध्य नक्षत्र हैं सो इनका एक एकका भुक्तिकाल सतसठि दिनका पांचवां माग प्रमाण है। बहुरि उत्तराभाद्रपदा रोहिणी पुनर्वसु ए तीन उत्कृष्ट नक्षत्र हैं सो . इनका एक एकका मुक्तिका दोयसै एक दिनका दशवां भाग प्रमाण है बहुरि पीछे पुष्य नक्षत्रका मुक्तिकाल सडसठि दिनका पांचवा भाग प्रमाण तामें तेईस दिनका पांचवां भाग मात्र काल पर्यंत पुष्य नक्षत्रकी मुक्ति इस अयनविर्षे हो है । ऐसें सर्व कालकों समच्छेद करि होहैं सूर्यके उत्तरायणवि एकसौ तियासी दिन हो हैं । बहुरि दक्षिणायनका पारंम श्रावण कृष्णकी पडिवाके दिन हो हैं । वहां प्रथम पुष्य नक्षत्र भोगिए हैं । पुष्य नक्षत्रका भुक्तिकाल सडसठि दिनका पांचवा भागविर्षे तेईस दिनका पांचवां भाग तो उत्तरायणविर्षे भए थे अवशेष चौवालीस दिनका पांचवा भाग इस अयनकी मादिवि भोगिए हैं । तहां उत्तरायण समान कोठे पूर्ण करनको प्रथम कोठवि तौ तेईसका पांचवां भाग देना । दूसरा कोठवि अभिजितकी जायगा । इकईसका पांचवां भाग देना। ऐसें प्रथम पुष्य नक्षत्रका भुक्तिकाल भएं पीछे क्रमते आश्लेषा १ मघा १ पूर्वा १ फाल्गुनी १ उत्तरा फाल्गुनी १ हस्त १ चित्रा १ स्वाति १ विशखा १ अनुराधा १ ज्येष्ठा १ मुल १ पूर्वाषाढा १ उत्तरापाढा इन नक्षत्रनिको भोगवै है। तहां माश्लेषा १. स्वाति १ ज्येष्ठा १ ये तीन जघन्य नक्षत्र है सो इनका तो एक एक एकका मुक्तिकाल सतसठि दिनका दशवां भाग प्रमाण है । बहुरि मघा, पूर्वाफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, अनुराधा, मूल, पूर्वाषाढा ये सात मध्य नक्षत्र है। सो इन एक एकका भुक्तिकाल सतसठि दिनका पांचवां भाग
SR No.010018
Book TitleJain Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankar P Randive
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year1931
Total Pages175
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size7 MB
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