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________________ ( १२७ ) नक्षत्रका मुक्तिकाल एक दिन विपैं तेईस दिनका सतसठियां भाग मात्र काल उत्तरायणविपैं गया अब शेष चचालीसका सांभर प्रमाण काल इहां भोंगिए हैं । बहुरि आलेपा आदि उत्तरापःडा पर्यंत नक्षत्र क्रमते भोगिए हैं। तहाँ तीन नम्रभ्य नक्षत्र सात मध्य नक्षत्र तीन उत्कृष्ट नक्षत्रनिका मुक्तिकाल क्रमतैं एक एकका आधा दिन एक दिन ड्योढ दिन जाननां । सर्वकाल मिलाएं चंद्रमात्रा दक्षिणायन विष तेरह दिन अर 'चवालीसका 'सडसंठित्रों भाग प्रमाण काल हो है । . अब राहुका कहिए हैं राहुके अभिजित आदि पुनर्वसु पर्यंत नक्षत्रकी भुक्तिच्या तिस तिस नक्षत्रविखें स्थापना करनां । बहुरि पुण्यविएँ सूर्य सपठि दिनका पांचवां माग प्रमाण भुक्ति होतें राहुके आठ च्यारिका इकसटिवां भाग प्रमाण भुक्ति होइ तो सूर्यके 'तेईस दिनका पनियां भाग प्रमाण मुक्ति होते राहू केती भुक्ति होइ ऐसेंल्याइ अपर्वतन करें दोयस छिहतरि दिनका इकसठवां भाग प्रमाण भुक्ति उत्तरायणकी समाप्तिविषै पुण्यकी स्थापना करनी बहुरि पूर्ववत् दक्षिणायन विषै विधान करना । भावार्थ - राहुकै उत्तरायणविषै प्रथम अभिजितकी भुक्ति हो है ताका काल दोयस चावन दिनका इकसठवां भाग मात्र है पीछे श्रवणादि पुनर्वसु पर्यंत नक्षत्रनिकी भुक्ति क्रमतें होडे । तिन विषे तीन जघन्य सात मध्य तीन उत्कृष्ट नक्षत्रनिका भुंक्तिकाल कमतें च्यारिसे दोयका इकसठिवां भाग बारहसै छैका इकपठियां भाग प्रमाण हो । पं पुष्यकी भूक्ति हो ताका काल आठसेच्यारि दिनका इकस ठिवाँ भागविषै दोयस छिइंतरि दिनका ईक्सठिवां भाग मात्र पुष्यकी मुक्तिका काल हो है । ऐसें सर्वकाल मिलि राहूकै उत्तरायण वि एकसौ सी दिन हो । 1 ·
SR No.010018
Book TitleJain Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankar P Randive
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year1931
Total Pages175
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size7 MB
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