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________________ (९८) - - भाग प्रमाण निषधका बाण हो है ३०६५८० ६२६५८० अब इन का वृत्तविष्कम जो ऐसा क्षेत्र गोल होइ तब चौढाईका प्रमाण सो कहिए है तहां जंबू द्वीपका वृत्तविष्कम एक लाख योनन नामें द्वीपसंबंधी चार क्षेत्र एकसो असीताको दोऊ पार्शनिका ग्रहण मर्थि देणाकरि ३६० यटाएं अभ्यंतर वीथीका सचि व्यास निन्याणवै हजार छसै चालीस योजन हो है ९९६४० । याको समच्छेद करनेके अर्थि उगणीसका भाग दोएं अठारह लाख तरेणवै हजार एकसौ साठीका उगणीसवां भाग होइ. बहुरि इहां प्रथम हरिक्षेत्रविर्षे कहिए है। " इसुहीण विक्खंभ चउगुणिदिसुणा हेदु हु जीव कदी। वाण कदि छह गुणिदे तस्य जुदे धणु कदी होदि ॥ १ ॥ ऐस करण सूत्र आगें कहेंगे ताकरि वाणका प्रमाण ३०६४८० को विकभका प्रमाण १८९३१६० मैं घटाइए १५८६५८० बहुरि बाणा जो प्रमाण ३०६४८० ताकौं चौगुणां किए १२२६३२० जो प्रमाण होई तीह करि गुणिए-१९४५६५४७८५६०० तव जीवाकी कृति होइ । - याका वर्गमूल किएं जीवाका प्रमाण हो बहुरि बाण हो जु प्रमाण ३०६ ५८. ताका वर्ग करिऐ ९३९९१२९६९६४०० बहुरि याकौं छह गुणां करिए ५६३ ९४७७७८ ४०० बहुरि याकौं नीवाकी कृति -
SR No.010018
Book TitleJain Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankar P Randive
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year1931
Total Pages175
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size7 MB
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