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________________ ।९७) इसकतण गरिव पर्वत लगाय वेदी पर्यंत अंतराल क्षेत्र सो वाण कहिए वेदी ताका प्रमाण ल्याइए हैं तहां भरत क्षत्रकी एक शलाका हिमवन पर्वतकी दोय इत्यादि विदेह पर्यंत दुणी दूणी पीछे आधी २ शलाका जो. सर्व जंबूद्वीपविर्षे एकसौ निवै शलाका कहिए विसवा हो हैं। वहां भरतक्षेत्रतें लगाय हरिवर्ष पर्यंत जोड इकतीस शलाका होहैं । कैसे ?- " अंतषणं गुण गुणियं आदि विहीणं रूऊणुतर भजियं । " इस सूत्रकरि अंतवि हरिवषकी शलाका सोलह ताकौं भरतादिकतै दोयका गुणार है । तातै गुणकार दोय कर गुणे बत्तीस तामैं आदि भरत क्षेत्रकी शलाका एकसौ घटाएं इकतीस, याकौं एक धाटि गुणकार एक ताका भाग दीएं भी, ऐसे हरि वर्ष शलाका इकतीस है । बहुरि याही प्रकार निषधशलाका तेरसठि होहै । वहुरि एकसौ निवै शलाकानिका एक लाख योजन क्षेत्र होइ तौ इकतीस बा तेरसठि शलाकानिका केता होइ ऐसे किए हरि वर्षका बाण तो तीन लाख दश हजारका उगणीसवां भाग प्रमाण हो है। बहुरि निषधका बाण छह लाख तीस हजारका उगणीसवां भाग प्रमाण हो है । वेदीके अर हरिवर्ष वा निपधकी वीचि इतनां अंतराल है। बहुरि यहां चक्षुःस्पर्शाअध्वान क्षेत्र कहनां । तहां अभ्यंतर वीथी पर हरि क्षेत्र वा निषध पर्वतके वीचि जो धनुषाकार क्षेत्र तहां वीथी की परिधि सो तो धनुष है। बहुरि वीथी अर हरि क्षेत्र वा निषधका पूर्वपश्चिमकी तरफ लंबाईका प्रमाण सो नीवा है । तहां पूर्वं जो हरिवर्ष वा निषध पर्वतका वाणका प्रमाण कह्या तामैं जंबूद्वीपसंबंधी चार क्षेत्र एकसौ असी योजन ताको उगणीसका भागहार करि समच्छेद किए चौतीसरे वीसका उगणीसवां भाग भया । सो इतनां घटाएं चक्षुःस्पध्विान क्षेत्र ल्यावने वि. तीन लाख छह हजार पांचसै अस्सीका उगणीसा
SR No.010018
Book TitleJain Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankar P Randive
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year1931
Total Pages175
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size7 MB
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