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________________ (९९) कही तिसविर्षे जोडिए २५०९६०२५६४०० ऐसे किएं धनुपकी ३६१ कृति होई, याका वर्गमूल ग्रहण किए १५८१४१७२ अपना भागहार - - का भाग दिएं सियासी हजार तीनसे सतहत्तरि योजन पर नव उगणीसवां माग प्रमाण हरि क्षेत्रका चाप हो हैं ८३३७७९ । बहुरि निषधपर्वतका कहिए. है । " इमूहीण विखंभं० " इत्यादि सूत्रकरि निषधका वाणको ३२६५८० पूर्वोक्त वृतविष्कम १८९३१६० मस्यौं घटा -- - - -- से अवशेष रहैं १२६६५८० ताको चौगुणां वाणका प्रमाण - - २५०६३२० करि गुणिए ३१७४४५४७८५६०० तब निप - धका जीवाको कृति होस् । याका वर्गमूल प्रमाण निषधकी जीवा है। . परि निषधका बाणकी जो कृति ३९२६०२४९६४०० ३६१ ताको छह गुणां कहिग २३५५६१४९७८४०० याकौं जीवाड़ी कृति - - - नो कही तिस वि जोडिए. ५५३०६९७६४००० तव धनुःकृति ३६१ होइ । याका वर्गमूल ग्रहण करि २३५१६१० अपना भाग
SR No.010018
Book TitleJain Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankar P Randive
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year1931
Total Pages175
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size7 MB
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