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________________ ( ३२ ) जाता है । इसी प्रकार हे गौतम । कर्म-मल के दूर होने से, राग द्वेष से रहित हो जाने से और गति स्वभाव से कर्मरहित जीव की गति होती है । हे भदन्त । कर्म - बन्धन से रहित होने के कारण कर्मरहित जीव की गति किस प्रकार होती है ? हे गौतम । जैसे कलाय की फली, मूगी की फली, माष की फली, सिम्बल की फली और एरण्ड की फली धूप में रख देने पर सूख जाती है, सूख कर फट जाती है, तब उस के वीज एकान्त मेजा पडते है । इसी प्रकार कर्मरहित जीव की गति होती है। हे भदन्त | कर्मरूप इन्धन के जल जाने से कर्मरहित जीव की गति किस प्रकार होती है ? हे गौतम ! जैसे इन्धन से रहित धूम्र की स्वभाव से ऊर्ध्व गति होती है, उसी प्रकार कर्मरहित जीव की भी गति होती है। भदन्त ! पूर्व प्रयोग के द्वारा कर्मरहित जोव की गति किस प्रकार होती है ? हे गौतम! जैसे धनुष से छोडे हुए, लक्ष्य की ओर जाने वाले बाण की बेरोकटोक गति होती है । इसी प्रकार कर्मरहित जीव की भी गति होती है । मूल पाठ * ते ण तत्थ सिद्धा हवति सादीया अपज्जवसिया असरीरा जीवघणा दसणनाणोवउत्ता निट्टियट्ठा निरेयणा * ते तत्र सिद्धा भवन्ति सादिका, अपर्यवसिता: अशरीरा,
SR No.010013
Book TitleJain Agamo me Parmatmavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year1960
Total Pages125
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size8 MB
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