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________________ (८३) विशुद्ध नय है )|| यह सर्व उत्तरोत्तर शुद्धरूप नैगम नयके ही वचन हैं। __ पुरुषः-मध्य घरमें तो महान् स्थान है, आप कौनसे स्थानमें वसते हैं ? व्यक्तिः -मैं स्वः शय्यामें वसता हूं (यह संग्रह नय है) विछावने प्रमाण ॥ पुरुषः-शय्यामें भी महान् स्थान है, आप कहांपर व्यक्तिः-असंख्यात प्रदेश अवगाह रूपमें वसता हूं (यह व्यवहार नय है)। पुरुष:-असंख्यात प्रदेश अवगाह रूपमें धर्म अधर्म आकाश पुद्गल इनके भी महान् प्रदेश हैं, आप क्या सर्वमें ही बसते है ? व्यक्ति नहीजी, मैं तो चेतनगुण (स्वभाव ) में वसता हूं ॥ यह जुसूत्र नयका वचन है ।। पुरुपा-चेतन गुणकी पर्याय अनंती है जैसोक ज्ञान चेतना अज्ञान चेतना, आप कौनसे पर्याय वसते हैं ? व्यक्ति-मैं तो ज्ञान चेतनामें वसता हूं ( यह शब्द 'नय है)।
SR No.010010
Book TitleJain Siddhanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Upadhyaya
PublisherJain Sabha Lahor Punjab
Publication Year1915
Total Pages203
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size6 MB
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