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________________ जैनशिलालेख-सग्रह [१११ ७२ कोनकोण्डल ( अनन्तपुर, आन्ध्र) १०वीं सदी, कन्नड [यह लेख रसासिद्धलगट्ट नामक पहाडीपर एक पाषाणपर खुदा है। यह श्रीनागसेनदेवका निसिदिलेख है। इसकी लिपि १०वी सदीकी है। [रि० सा० ए० १९४०-४१ ० ४५१ पृ० १२६ ] मथुरा १०वीं सदी, सस्कृत-नागरी [इस लेखमें १०वी सदीकी लिपिमें मूलसपके किसी आचार्यका उल्लेख है।] [रि० इ० ए० १९५२-५३ ० ५२७ पृ० ७७] कोलक्कुडि (वि० मदुरा, मद्रास) १०वीं सदी, तमिल समणरमके पहाडीपर जैन मूर्तियोंके उत्तरकी ओर चहानपर [इस लेखमें गुणभद्रदेव तथा न्द्रप्रमका निर्देश है। लिपिके अनुसार यह लेख १०वीं सदीका होगा।' "रि० इ० ए० १९५०-५१ २० २४२] घेखर (मन्दसौर, मध्यप्रदेश) १०वी सटी, सस्कृत-नागरी [ इस लेख में नन्दियडसपके जैन आचार्य शुभकीति तथा विमलकीतिका उल्लेख है। लिपि १०वी सदीकी है।] [रि० इ० ए० १९५४-५५ क्र० २०३ पृ० ४५]
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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