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________________ ६९ -१०२] वरण व मण्णेके लेख (जयोनके गुर ) इन दोनोंक गुरु थे। इनने विजनवाटिकामे दो जिनमन्दिर बनवाये थे। उनके लिए अम्मराजने वेलनाण्डु प्रदेशका पेडगालिडिप नामक ग्राम दान दिया था।] [ए० इ० २४ पृ० २६८] वरुण (मैनूर ) १०वी मही, कन्नड़ १ श्री श्रीमत्पर 'यि राजगुरु२ मण्डलाचायं विथमकार भत्रिगोत्र परशुराम पाचन चामुण्डरनु मा-- ३ मठरकरु वारण सांथिनाथस्वामिय माडिसिटर भावर प्रिय दुणदुचल४ टाचार्य मकलु विजय-अण बमण मदिर [इस लेखमें बाचन चामुण्डर भट्टारक-द्वारा वरण ग्राममें शान्तिनाथमति अर्पण किये जानेका निर्देग है। यह मति विजयण और वमण्ण-द्वारा वनायी गयी थी। लेखकी लिपि १०वीं सदीकी प्रतीत होती है। ] [ए. रि• मैं० १९३० पृ० १७१] १०२ मण्णे ( मैमूर) १०वी सही, कन्नड [इम लेखम देवेन्द्रपण्डित भट्टारकी शिष्या मारब्वेकन्तिके समाधिमरणका तया कलिगन्चे कन्ति-द्वारा इस निसिधिकी स्थापनाका उल्लेख है । लिपि १०वी सदीकी है।] [५० रि० मैं० १९१७ पृ० ३९]
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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