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________________ जैनशिलालेख-संग्रह [१००५८ यु मुख्यल्कुडु (न) चूरुष पहुध । दक्षिणत: चूंरि प्रान्त (पति) युत्तरंबुन कुण्डि५९ विहिगुण्ठ । नैऋत्यत चूटूरियम्मपोट्यन्वगुडि। (पश्रिमत ) रेटि(प)डमटिदरि । वा६० यख्यतः पलिवेरिपोलगरुसुन गारलगुण्ठ । उत्तरतः तप्पराल प(ड)व । ई६१ शानत: कोडगालिडिपतियु (बलिवेरियु मुस्यक्कडुन नहुपनि गुण्ठ ।। तस्य (स्थे)यादल-- ६२ भ्यं सुचिरमुरुतर (शासन राजकोक्त । सत्कोतवें गिपस्य प्रकट गुणनिधेरम्मराजस्य पूज्य । १३ तन्नेद शा(सोन (पालित)जिननिगम शौर्यमीवान्यनाथबातो()मौलिमालामणिकमकरिकोमल पाँचवॉ पन्न ६४ कोल्लासिता ॥(१७) अस्योपरि न केनचिद्बाधा कर्तव्या य करोति स पचमहापातकस६५-६९ युक्तो भवति । तथा चोक्त व्यासेन ।। (नित्यके शापात्मक श्लोक) ७. प्राज्ञति कटकराज जयन्ताचा७१ यण लिखितम् ॥ [इस ताम्रपत्रमे मदनूर तथा कलचुम्वूर लेखोके समान पूर्वीय चालुक्योकी वशावली कुन्ज विष्णुवर्धनसे प्रारम्भ कर अम्मराज (द्वितीय) विजयादित्य तक दी गयी है । अम्मराजके पिता चालुक्य भीम (द्वितीय) का एक सामन्त नरवाहन था जो त्रिनयनकुलम उत्पन्न हुआ था तथा जैनधर्मीय था। उसका पुत्र मेलपराज था । इसकी पत्नी मेण्डाबाको दो पुत्र हुएराजभीम तथा नरवाहन (द्वितीय)। जैनाचार्य चन्द्रसेनके शिष्य नाथसेन
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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