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________________ ३६८ जैनशिलालेख-संग्रह [५७४कोदि-द्वारा जमीन गिरवी रखकर २१०० वीररायफण कर्ज प्राप्त करनेका उल्लेख है । इसके व्याजके रूपमे २८ मुडे चावल देना स्वीकार किया था। इसका उपयोग गेरुसोप्पेको ललितादेवी-द्वारा स्थापित बसदिमें पूजाके लिए होना था। तीसरा भाग मेप १, रविवार, नन्दन संवत्सरके दिनका है। इसमें तीन वन्धुमो-द्वारा पाश्वनाथवस्तिसे कुछ कर्ज लेनेका तथा उसपर कुछ निश्चित रकम व्याज देनेका उल्लेख है।] [रि० सा० ए० १९४०-४१ ० ए ९] ५७७ मूडविदुरे ( मैसूर) कन्नड [इस ताम्रपत्र-लेखमें चारुकीति पण्डितदेव-द्वारा निर्मित चण्डोन पार्श्वनाथवसदिके लिए कर्वरवलिके वर्मनन्द तथा उनके बन्धु कुगिय वमिसेट्टि-द्वारा ७०१ गद्याण दान दिये जानेका निर्देश है। लेखको तिषि वृषभ १५, रविवार, दुर्मुखि सवत्सर ऐसी दी है। [रि० सा० ए० १९४०-४१ ० ए ७] ५७८८ निट्टर (मैसूर) १ चित्रमानुसवत्सर ३द फाल्गुण ५ दशुद्ध ५ यु सोम ६ वार बोम्मण्ण ७ गलु स्वर्गस्त ८ राद निषिधि [ इस निषिधिलेखमे फाल्गुन शु० ८, चित्रभानु सवत्सरके दिन बोम्मण्णके समाधिमरणका उल्लेख है।] [ए. रि० मै० १९३० पृ० २५७]
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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