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________________ -१७३] कारकल आदिके लेख मन्दिरके कालहस्ति और शिवरामने यह समझौता किया था। तिथि ज्येष्ठ शु० १ सोमवार, गक १४(६१), विलवि सवत्सर ऐसी दी है। (शकवपकी सख्याके अन्तिम अंक लुप्त हैं जो सवत्सरनामानुसार दिये गये है)।] [रि० सा० ए० १९३५-३६ क ई १८ पृ० १६२] ४७२ कारकल (द० कनडा, मैसूर) शक १४६५=सन् १५४३, कन्नड [यह लेख (ताम्रपत्र) चैत्र ४० ४ शक १४८५ शोभकृत् सवत्सरका है। इसमें चन्दलदेवीके पुत्र पाण्डयप्परम तथा तिरुमलरस चौटर इनमें अनाक्रमण सन्धिका उल्लेख किया है। इसके साक्षोके रूपमें जैन आचार्य ललितकोति भट्टारका उल्लेख हुआ है।] [रि० सा० ए० १९२१-२२ पृ० ९क० ए ५] કરે कुरुगोडु (वेल्लारी, मैसूर) शक १४६७ =सन् १५१५, कन्नड एक भग्न मन्दिरके दक्षिणी दीवालपर [विजयनगरके राजा वीरप्रताप सदाशिव महारायके समय शक १४६७, विश्वावमु संवत्सरमें यह लेख लिखा गया। रामराज्य-द्वारा जिनमन्दिरके लिए कुछ भूमिदान देनेका इसमें निर्देश है।] (इ० म० बेल्लारी ११३ )
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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