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________________ ३१८ जैन शिलालेख-मंग्रह [ ४६९ अन्वय कुछ सज्जनाने की थी । प्रतिष्ठा तिथि ज्येष्ठ शु० ३, मोमवार, मवत् १५९३ ऐमी दी है । ] [रि० ६० ए० १९५३-५४ क्र० १६२ पृ० ३३ ] ४६६ हनुमंतगुडि ( रामनार, मद्राम ) शक १४०० मन १५३३, तमिल मलचनाव जैन मन्दिरके आगे पढ़ी हुई शिलाओं पर [ इसमें शक १४५५ के लेसके गण्ड है । एकमें जिनेन्द्रमगलम् अचना कुरुवडिमिदिका निर्देश हूं जो मुत्तोय यूग्म् विभाग में था । ] ( ४० म० रामनाड २७९ ) ४७० नीलचनहल्लि (मैसूर) सन् १५३४ वट [ इम लेसमे सन् १५३४ में मदवणमेट्टिके पुत्र पदुमणसेट्टि द्वारा अनन्तनाथचैत्यालयमे किमी व्रत पालनका उल्लेख है । ] [ ए०रि० मं० १९१५ ० ६८ ] BSN लक्ष्मेश्वर (मैसूर) शक १४ (६१) - सन् १५३९, कन्नड [ इस लेपमें जैन और वां एक विवादके समझौतेका उल्लेख है । यह विवाद जिनमूनियां के सम्मान के सम्वन्धमें था | जैनी की ओर शमवसति गणाचार्य तथा हेपणाचार्यने और क्षेत्रीको और दक्षिणसोमेश्वर
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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