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________________ ३२० जेनशिळालेस संग्रह [ ४७४ B कारकल (मैसूर) शक १४६६ सन् १५४५, कनट [ यह लेख माघ शु० ३, गुरुवार, शक १४६६, क्रोधि सवत्सरवा है । चन्दलदेवीके पुत्र चन्द्रवशीय पाण्डयप्प वोटेयके राज्यकाल में कारिजे निवामी सिदवसयदेवरमाग कारकलके गुम्मटनाथ स्वामीको कुछ भूमि अर्पण किये जानेका इसमें उल्लेस है । ] [रि० इ० ए० १९५३-५४ क्र० ३३९ पृ० ५२] ४७५ मूडविदुरे (मैसूर) शक १४६८ = सन् १५४६, संस्कृत-कन्ट [ इस ताम्रपत्र में विलिगिके शासक वीरप्पोडेयकी वशावली छह पीढियो तक दी है । विदुरे नगरकी त्रिभुवनचूडामणि वसतिके लिए इस शासकने चिक्कमालिगेनाडु विभागके कुडुगिनवयल ग्रामको कुछ जमीनका उत्पन्न दान दिया था । इमी मन्दिरके चन्द्रनाथदेवको नैवेद्य अर्पण करनेके लिए एक चाँदीका प्याला और कुछ धन भी दान दिया था। यह दान वीरप्पके चाचा तिम्मरसको पत्नी वीरम्मके नामसे था । इसी तरह घण्टोडेयके पुत्र तिम्मप्पकै नामसे चन्द्रनाथदेवके दुग्धाभिपेक्+ लिए कुछ दान दिया गया था । कार्त्तिक शु० ७, शक १४६८, विश्वावसु सवत्सर, यह इस दानकी तिथि थी । प्रथम आषाढ शु० १०, पराभव सवत्सर यह दूसरी तिथि दी है । ] [रि० स० ए० १९४०-४१ क्र० ए २५० २३]
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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