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________________ -४५६ ] मूढविदुरं भडिके लेख By मूडविदुरे (मैसूर) शक १४२६ = सन् १५०४, कन्नड ૧૧૩ [ इन ताम्रपत्रमे उल्लेख है कि कदब कुलके धामक लक्ष्मप्परम अपरनान भररमने जैनांके ७२ सस्यानोके प्रधान आचार्य चारुकीति पडिताचार्यके एक शिष्यको अपने राज्यके एक हिस्सेके धार्मिक अविकार प्रदान किये । तिथि-आम्बिन कृ० ५, शक १४२६, क्रोषि संवत्सर । ] [रि० स० ए० १९४०-४१ पृ० २४ क्र० ए ५ ) ४५६ करन्दै ( उत्तर अर्काट, मद्राम ) दशक १४३१ = सन् १५०९, तमिल [ यह लेख मकर शु० १०, गुरुवार, शक १४३१ को लिज्ञा गया या । विजयनगरके शासक नरसिंहरावके समय रामप्प नायकने मन्दिरांकी भूमिपर जोडि सक्षक कर लगाया था जिससे मन्दिराको हानि हुई थी । कृष्णदेवराय सिंहासनारूढ हुए तब उन्होंने मन्दिरोकी भूमिको करमुक्त घोषित किया । इस घोषणाका लाभ पडैवीट्ट, तथा चन्द्रगिरि प्रदेशके जैन और बौद्ध मन्दिरोको भी हुमा । करन्दै स्थित जिनमन्दिर भी इससे लाभान्त्रित हुआ ऐसा लेखमें कहा गया है । ] [रि० स० ए० १९३९-४० क्र० १४४ ]
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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