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________________ ६११ जैन शिकालेस संग्रह [ ४५७ ४५७ गुरुवयनकेरे (द० कनडा, मैसूर ) शक १४३१ = सन् १५१०, कन्नड [ यह लेख स्थानीय शान्तीश्वरवमदिके भण्डपमे है । इसमें माघ व० १०, सोमवार क १४३१ को वेलतगडीके कुछ लोगो द्वारा कुछ भूमिके दानका उल्लेख है । ] [रि० स० ए० १९२८-२९ ० ४८० १०४५] ४५८ वरांग (द० कनडा, मैसूर ) शक १४३७ = सन् १५१५, कन्नड [ यह लेख विजयनगरके कृष्णदेवमहारायके समय माघ शु०५, शुक्रवार, शक १४३७ भावसवत्सरका है। इनमें तुलुराज्यके शासक रत्नप्पोडेयका उल्लेख किया है । देवेन्द्रको तिकी प्रार्थनापर इस बसदिके लिए देवराय द्वारा पहले दी हुई भूमिके पुन खेतीयोग्य बनानेका इसमें उल्लेख है । यह कार्य अक्कम्म हेग्गिडिति तथा उनके सहयोगियो द्वारा सम्पन्न हुआ था ] [रि० मा० ए० १९२८-२९ पृ० ४९ क्र० ५२८ ] ४५६ चामराजनगर (मैसूर ) सन् १५१८, कन्नड [ इस लेखमें अरिकुठारके महाप्रभु कामैय नायकके पुत्र वीरंय नायकद्वारा विजय ( पाप ) नाथ मन्दिरके लिए सन् १५१८ में कुछ दानका उल्लेख है । ] [ ए० रि० मै० १९१२ पृ० ५१]
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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