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________________ ३१२ जैनशिलालेख-संग्रह [१५० ४५०-४५१ आदवनी (बेल्लारी, मैसूर ) १५वीं सदी, तेलुगु [ये लेख पहाडीपर एक पापाणपर खुदे हुए तीर्थकरमूतिके पास और चरणपादुकाओके पास है। ये बहुत घिसे हुए है। मूतिके पास एक शकवर्षकी सख्या खुदी है तथा पादुकामओके पास किसी आचार्यका नार्य है। दोनो अच्छी तरह पढना सम्भव नहीं है । लिपि १५वी सदीकी है। [रि० सा० ए० १९४१-४२ ० ७४-७५ पृ० १३५] ४५२-४५३ नरसिंहराजपुर (मैसूर) १५वीं सदी, कन्नड [ यहाँक दो मूर्तिलेख १५वी सदीके लिपिके है। इनपर देविसैट्टिके पुत्र दोडणसेट्टि तथा नेमिसेट्टिके पुत्र गुम्मणसेट्टिके नाम उत्कीर्ण है।] [ए. रि० मै० १९१६ पृ. ८४] ४५४ हनसोगे (मैसूर) १५वीं सदी, कन्नड . हनसोगेय हिरियबसदिय २ कोण्डिय कल्ल भोरसेय घोम्मि३ सेष्टियरु इक्किसिदर [यह लेख स्थानीय आदीश्वरवसदिके सभामण्डपके छतके पाषाणपर खुदा है। यह पापाण (कोण्डियकल्लु) घोम्मिसेटि-द्वारा स्थापित किया गया था ऐसा लेखमें कहा है। लिपि १५वी सदीकी है।] [ए० रि० मै० १९३९ पृ० १९४ ]
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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