SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 267
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २८० जैनशिलालेख-सग्रह [३६७३ रमनघं चारुकैवल्यनेत्र नित्य निर्वाणरामाकुचविलिखितकाश्मीर राग वराग सुंगं देवेन्द्रानम्रपा४ द गुणविकसदनन्तं स्ववोधात्मतत्व मांगल्यं मन्यसाथ निहत मनसिज नव्यधर्मस्वरूपं । (३) इदु ५ जम्बूद्वीपमंता भरत विषयदोल पडव मेरुसिदं पदपिन्दा मेरुवि दक्षिणदे तुल कॉगिन्दवी शुद्ध६ दीप मुददि "वेंगु "वलि पनस नदीतीरदोल कौंगु जम्बूसदनं चेल्वागि तोकु ." बिडार हस्तिसमूह। (8) मा तुलुवाधीशरमणि 'वदनमागि तो'दु नयदि नीतियुत गेरसोप्पे सोलि८ सुतिपुंछ विमवदिढायमरावतिय । (२) अन्ता नगिरिय राज्य कधीश्वरनेनिसिद मरुलयरसरन्वयसप्रदायदा९ यदि बन्द कीर्तिगे जयस्तंभनेनिसिद हैवेभूपालन प्रवापवेन्तेने सान्द्र देमकुन्दोद्गमकुमुदन१० मलमलिकाफुलमुख्यवृन्दं गंगावरगतरलहरहास तारनीहारहार सन्दिदी चारकीति.. १५ प्रमवदनुनयविन' 'मालपुद्ध श्रीहवेभूपालन निजयशम बपिणसल बल्लना१२ व दक्षिणमण्डलिक निजनिवास' सलक्षण राजराजकटकगल सूरेयना१६ यढे तोण्डमण्डलभूपर मन्दि रक्षिसु हैवेराज वेनुतिपुदु१४ नलियटे नोलपढ मावनियंककाररतिचक्रद हस्तपराक्रमाकनी हैवनृपाल चित्रय१५ शो' 'निमय दुन्दुमिताडनंगलि नावलिशब्ददि परिदु दूरदि सचरिसुत्तमिपुंदा
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy