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________________ -३६७] तिरनिडाड आटिक लम्ब ७० ३९५ निरुनिहंकोण्डे (मद्राम) शक १८३ =मन् १३४१, तमिल [इन लेम्बकी तियि धनु शुक्ल १३ वृधवार, शक १२८३ शुभकृत मवत्सर ऐमी दी है। इसमें दोम्बादि विन्लबहरयन्के पुत्र ( नाम लुप्त)द्वारा अप्पाण्डार मन्दिरमें दीपके लिए भूमि दान दी जानेका उल्लेख है। यह दान गोप्पाग उवाची प्रेरणाम दिया गया था। लन्च अप्पाण्डार चन्द्रनायमन्दिर मण्डाकी दीवालम लगा है।] [रि० मा० ए० १९३९-४० क्र० ३०३ पृ० ६५] ३१६ साविक्रेरि (धाग्वाड, ममर) गक १(२)६८=मन् १३७६, कन्नड [इम लेबमें मार्गगिर व० १(१), बुधवार, शक १(०)९८ नल नंवत्सरके दिन वालगल्लिक बेलप्पके समाधिमरणका उल्लेख है। उम समर विजयनगरके वीरवृक्करायका गाउन चल रहा था।] [रि० इ० ए० १९४७-४८ क्र० २३. पृ० २७ ] ३६७ गेरसोप्पे (मैसूर) शक १३००=सन् १३७८, क्ढ । श्रीमनपग्मगंमारम्यावादामावलानं जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य मापनं निनमायनं (१) श्रीमद्व२ जिनेन्द्राय तम्मानंतमहात्मने मर्चवावविशिष्टाय भन्यालि. कुमुदन्दव (8) नं वं देवटचं सुरचि
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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