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________________ जैनशिलालेस-संग्रह तिरुनिडंकोण्डै (मद्राम) १३वीं सदी, तमिल [यह लेख चन्द्रनाथ मूतिके पादपीठपर खुदा है । इस मूर्तिकी-जिसे कच्चिनायकर कहा है - स्थापना आलप्पिरन्दान् मोगन् कच्चियरायरद्वारा की गयी ऐसा लेखमें कहा है । लिपि १३वी सदीकी है। ] [रि० सा० ए० १९३९-४० ऋ० ३१९ पृ० ६७] ३८२ कोट्टगेरे (मैसूर ) १३वीं सदी, कार [इस लेखमें देसियगण-इगलेश्वर वलिके हेरगु निवामी भाचार्य हरिचन्द्रके शिष्य माधनन्दि-द्वारा एक शान्तिनाथ मूतिकी स्थापनाका उल्लेख है । लिपि १३वी मदीकी है।] [ए. रि० मै० १९१९ १०३३] ३८३ तिरुनिडकोण्डै (मद्रास) १३वीं सदी, तमिल [ यह लेख यहाँको पहाडीपर चढनेके लिए बनी सीढियोके पास है। इन सीढियांका निर्माण गुणवीरदेवन् पण्डितदेवन्ने किया ऐमा लेखमें कहा है। लिपि १३वी सदीकी है।] [रि० सा० ए० १९३९-४० ० ३१६ पृ० ६७ ]
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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