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________________ -३८० ] इलेवीढ आदिके लेख ३७६ हलेबीड (मैसूर) १३वीं सदी, कन्नड १ जिननात्मोयेष्टदन्यं निजगुरु नयकोतिव्रतीश लसदूभूवि२ नुतं तानुक्किसेहिप्रभु पितृ तनगेकब्वे वायेन्दो डिन्तीवन ३ धिन्यावृतधात्रीतल ढोल अर्दे पुण्योद्मवत्रासदो कूटि निवान् - 8 तं नामिसेट्टि स्फुट विशढयशोलक्ष्मिय ताने पेन्त ॥ ५ श्रन्तात व्यवहारदि मन्त्र विक्रमाक्रान्त ६ लढेव • मान्धात दो ७ कोण्डु स्वान्त विश्रुत ना मिसेहि दिवटोल कैवल्यमं तालुटिद २७३ [ इस लेखमें उक्किसेट्टि और एकव्वेके पुत्र नामिसेट्टिके समाधिमरणका उल्लेख है । नामिसेट्टिके गुरु नयकीति व्रतीश थे । लेखकी लिपि १३बी सदीकी प्रतीत होती है । पक्ति ५ के अस्पष्ट भागमे सम्भवत वीरबल्लाल (द्वितीय) के राज्यका और तिथिका उल्लेख था 1 ] [ ए०रि० मं० १९२९ पृ० ७८ ] १८ ३८० तिरुनिडकोण्डै ( मद्रास ) १३वीं सदी, तमिल [ इस लेखमें कहा गया है कि कुलोत्तू ग चोल राजा- द्वारा कनकच्चि - नगिरि अप्पर् देवको अर्पित नल्लूर यह एक धार्मिक स्थान है । यह लेख चन्द्रनाथ मन्दिरके वराण्डेमें लगा है तथा १३वीं सदीकी लिपिमें है । ] [रि० स० ए० १९३९-४० क्र० २९९ पृ० ६५ ]
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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