SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 259
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २७२ जैनशिलालेख-सग्रह [३७७[इस लेखके प्रारम्भमें होयसल वशके राजाओंकी परम्परा नरसिंह (तृतीय) तक दी है। नरसिंहने राजधानी स्थित शान्तिनाथ जिनालयके लिए चिककोयनहल्लि ग्राम दान दिया। यह दान मूलसघ-बलात्कारगणके कुमुदचन्द्र भट्टारकके शिष्य माधनन्दि सिद्धान्तचक्रवर्तीको दिया गया था। लेखमें कुमुदचन्द्रके पूर्ववर्ती १९ आचार्योक नाम भी उल्लिखित है।] [ए.रि. मै० १९४० पृ० १६४ ] ३७७-३७८ भूगूर (मैसूर) १३वीं सदी, कन्नड (अ) अंमूलसंघ देसियगण पुस्त २ कगग्छ कोंडकुंदान्वयक 'हगेरे३ यतीर्थद प्रतिवद्धट भरतपण्दितरिगे । अक्कियन्येय मगलु" (ब) मूलसष देगसिण पुस्तकगच्छ कोंडकुटान्वय इंगणेश्वर सं(घ)द श्रीमानुकीर्तिपं२ डितदेवर शिप्यरप्प कान नंदिदेवर गुडगलप्प भूगूर समस्त ३ गावुण्डगलु कोडेयर बसदिय जीर्णोद्धारणवमा ४ डि • सिदर मगलमहाश्री [ये दो लेख मूगूरकी आदिनाथवसदि तथा गास्वनाथवसदिके मूर्तियो. के पादपीठोपर है । पहलेमें मूलसघ-देसियगणक क-हगैरे तीर्थसे सम्बद्ध भरत पण्डितके लिए जक्कियब्बेकी कन्या (नाम लुप्त)-द्वारा कुछ दान दिए जानेका उल्लेख है ! लेख अधूरा होनेसे विवरण स्पष्ट नहीं हो सकता। दूसरेमें मूल सघ-देसिगण-इगणेश्वर सघके भानुकीति पण्डितके शिष्य - नन्दिके शिष्य गावुण्डो द्वारा मुगुरको कोठेयरवसदिके जीर्णोद्धारका उल्लेख है । लेखोकी लिपि १३वी सदीकी है।] [एरि० म० १९३८ पृ० १८२-८३ ]
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy