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________________ जैनमिलाप-मग्रह [२१:३१ मलहल्लिय मुंटण किमय अस्लिय गलगुत्त३२ गयु कोष्ठियहरिलय मुद्रण मिंग्य भावदलय ३३ शिरियकरय फेलगण अकय नोटमु । श्रन्तु माय मुदवागि टेशियगणन अमटि र कफ काणगणट य३४ मदि योन्टक अन्तु पत्र धटिंग ममानयाग अलि हुहि. ३५ द माचिदनु कमयाइनु ॥ ३६ म्यहत्ता परदत्ता वा यो हरत बमुधरा परिवर्प पाह२७ माणि विष्टाया जायत क्रिमि [इम लापमै होयमल गजा विष्णुवर्धन महाप्रधान दण्डनायक मरियाने तया भरतिमय्य-दाग दगिनकरे म्यानको पांच बमतियाम बाहुबलिफूट नामक वमतिका दान तथा कुछ भूमिक दानका निर्देश है। यह दान काणूरगण-तित्रिणिगच्छके मुनिभद्र गिढान्नदेवके गिप्प मेषचन्द्रदेवको दिया गया था। [ए. रि० मै० १९४० पृ० १५६ ] २१३ कम्बदहल्लि ( मैमूर) १वी मी-पूर्वाध (मन् ११३०), कन्नड १ (द्रोह)घरट्ट टण्डनायक गगराजन मग योप्पटेयरिंग स्वारि • हाहवरहाचारि क्वमतिम माडिद ॥ मंगल महाश्री [ यह लेप म्यानीय बान्तीवर वसदिके भग्नावोपोमें है। यह वसदि दण्डनायक गगराजके पुत्र वोपदेवके लिए द्रोहपरट्टाचारि नामक पिल्पकारने बनवायी ऐमा लेखमें कहा गया है। यह फनवमदि अर्थात् निर्माताद्वाग बनवायी पहली बमदि यी। गत दमका समय लगभग मन् ११३० है क्योकि वोप्प-द्वारा गन् ११३३ में हलेविटमें निर्मितमा दीश्वरवमदि विद्यमान है। (ए० रि० मै० १९३९ पृ० १९३]
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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