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________________ -२१४] १ श्रीमन्परमगंभीरस्याद्वाद्वामोघलानं जीयान त्रलोक्य : ( नाथन्य शासन जिन ) शासन ॥ स्वन्ति मनस्तभुवना ર (म )हाराजाविराज परमं पर नालूरका लेख ૪ सालर (मैसूर) सन ११००, कन्नड .. " 2 ( मल्या) श्रयकुलतिलक चालुक्याभरणं श्रीम (कमल) देवर विजयराज्यमुत्तरोत्तरामि • ( द्विप्रवर्धमान ) माचंद्रावतार मलुत्तमिरं । समधिगतपचम७ ( हा महामंडलेश्वरं वनवासिपुरवरा वीश्वर त्रिक्षयश्मा ८ ( समव चनुरागोतिनग ) राधिष्ठितल ( लाटलीचन ) चनुमुंज ९ श्रीजयतीमधुकेवरदेवत्ववरप्रसाई नामादि १० ममस्तप्रशस्त्रिसहित श्रीमन्महामण्डलेश्वरं मयू११ स्वमंडेच तत्पादपद्मोपजीवि श्रीमन्महामण्डलेश्वर १५७ १२ मगर कारगरसर सान्वलिगेसायिरमुमं दुष्टनि१३ ग्रहविशिष्टप्रतिपालनडिनालुत्तिनं ॥ श्रीमृदसबकी १४ (ण्ट) कुन्डान्वय का गढ मेघ (पा) पाणगच्छढ श्रीप्रमाच१५ सिद्धातंवर शिप्य कुलचद्रपं (डित) देवर गुड्ड (भ) - १६ द्वरामिसेहि श्रीमद्नादियप्रहार सालियर मामिर्व१७ र ब्रह्मजिनालयढ यमद्रिय निवेद्यक्के भूलोक पंढ १८ ५ नेत्र साधारणमवस्मरढ पुष्य सुन्द्द ३ मोमवारट वृत्त [ यह लेख चालुक्नसत्राट् मूलोकमल्लके ५वे वर्षमे पौप सोमवारको लिन्ना गया था । उन नमय कदम्बवधीन मण्डलेश्वर मयूरवर्माके धाननान्तर्गत सान्तलि प्रदेशपर मगर कारगरसर् शासन कर रहा था । उक्त तिथिको नालियूर अग्रहारमे स्थित ब्रह्मजिनालय वनदिको भद्र ३
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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