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________________ ११. जैनशिलालेस-संग्रह [ १५५वशके गुरु वर्धमान - विद्यानन्द स्वामी ~ उनके गुरुवन्यु ताकिकार्क माणिक्यनन्दि - गुणकीति - विमलचद्र-गुणचन्द्र - गण्टविमुक्त - उनके गुरुबन्धु अभयनन्दि । कालान्तरसे चोल राजाने वेलवल प्रदेशपर आक्रमण किया तब इस मन्दिरको नष्ट-भ्रष्ट किया किन्तु शीघ्र ही इम चोल राजाको अपने पापका प्रायश्चित्त करना पड़ा क्योकि चालुक्य सम्राट् लोक्यमल्ल सोमेश्वर (प्रथम ) द्वारा वह युद्ध में मारा गया। तदनन्तर बेलवल प्रदेशके कई शासक हुए जिनने इस मन्दिरकी और कोई ध्यान नहीं दिया। चालुक्य सम्राट् भुवनकमल्ल सोमेश्वर (द्वितीय) के समय वेलवल तथा पुलिगेरे प्रदेशका शासन महामण्डलेश्वर लक्ष्मरमको सौंपा गया। उसने इस मन्दिरका जीर्णोद्धार किया तथा उसके लिए मुनि त्रिभुवनचन्द्रको समुचित दान दिया। इस दानकी अनुज्ञा देते समय सम्राट् सोमेश्वर तुगभद्रा नदीके तीरपर कक्करगोटके सेनाशिविरमे थे तथा शक ९९३ वर्ष चल रहा था। इस शिलालेखके दूसरे भागमें बेल्वलके अगले शासक काटरसका उल्लेख है जो मयूरावती नगरका स्वामी था। तथा ज्वालिनी देवीका उपासक था। इसने उपयुक्त मन्दिरको पाक ९९४ में कुछ दान दिया। यह दान भी त्रिभुवनचन्द्रको दिया था। तीसरे भागमें इस मन्दिरके व्यवस्थापक उदयचन्द्रके शिष्य सकलचन्द्रका उल्लेख है। इनने मन्दिरको जमीन जोतनेके लिए मल्लय्य आदि तीस बेष्ठियोको सौंपी थी। चौथे भागमें महाप्रधान रेचिदेव - द्वारा बट्टकरे नगरके जिन तथा कलिदेवकी पूजाके लिए कुछ जमीन दान दिये जानेका उल्लेख है। १. यह राना चोल राजाधिराज होगा।(सन् १०१-५२) २. यह युद्ध सन् २०५२ के भारम्भमें हुआ था। ३. पूर्वोक्त गुरुपरम्परासे त्रिभुवनचन्द्रका सम्बन्ध अगले लेखमें स्पष्ट किया है।
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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